
पूरे विश्व में हैं लाल भैरों बाबा के सिर्फ दो मंदिर, दूसरा मंदिर सिसवां में
अंधेरा होते ही मंदिर में नहीं रख सकते कदम, न ही लगाए जाते हैं ताले
हिमाचल दस्तक, ओम शर्मा। बद्दी
उत्तर भारत के विश्वविख्यात प्राचीन बाबा लाल भैरों मंदिर में भैरों बाबा की 37 फीट ऊंची मूर्ति का विधिवत अनावरण किया गया। बद्दी-सिसवां चंडीगढ़ मार्ग पर सिसवां में स्थित बाबा लाल भैरों मंदिर में भव्य आयोजन के दौरान मंदिर के महंत दिलवाग गिर ने हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थित में मूर्ति का अनावरण किया। इस दौरान पंडितों द्वारा पूर्जा अर्चना के दौरान हवन यज्ञ का आयोजन किया गया।
पांच दिन तक लगातार चले हवन क्रिया के उपरांत मुल्लांपुर के पंडित नरेश कुमार ने मूर्ति का अनावरण किया और हजारों श्रद्धालुओं ने भैरों बाबा के साक्षात दर्शन कर आर्शीवाद हासिल किया। मंदिर का रखरखाब करने वाले मंहत दिलवाग गिर व कुलबंत गिर ने बताया कि 10 लाख रुपए की लागत से भैरों बाबा की मूर्ति का निर्माण पांच माह के भीतर किया गया। उड़ीसा से आए करीगरों ने बेहद मनोहक करीगिरी का नमूना प्रस्तुत कर साक्षात भैरों बाबा को मूर्ति में उतारा।
लाल भैरों के हैं पूरे विश्व में मात्र दो मंदिर
पूरे विश्व में मात्र दो मंदिर हैं जहां साक्षात लाल यति भैरों अपने भगतों को दर्शन देते हैं और उनके कष्ट हरते हैं। इस मंदिर में शीश निभाने से श्रद्धालुओं को जादू टोने और बीमारियों से छुटकारा मिलता है। लाल भैरों का एक मंदिर श्री काशी जी में स्थापित है और दूसरा मंदिर बद्दी के निकट चंडीगढ़-सिसवां मार्ग पर गांव सिस्वां में स्थित है।
यहां प्रसाद के रूप में कच्चे चावल दिए जाते हैं। इस मंदिर की यह विशेषता है कि यहां सूर्य ढलने के बाद मंदिर में कोई प्रवेश नहीं कर सकता। न तो मंदिर में ताले लगाए जाते हैं और न ही मंदिर में कोई पुजारी रूकता है। ऐसी मान्यता है कि अगर मंदिर में रात के समय कोई प्रवेश करने की हिम्मत करे तो उसे भैरों बाबा का दंड भुगतना पड़ता है। ग्रामीणों ने अनुसार एक बार किसी साधू ने यहां रात के समय प्रवेश करने की हिम्मत की और वह अपनी सुध बुध खो बैठा।
भैरों बाबा ने नहीं स्थापित होने दिया था शनि मंदिर
सिसवां स्थित लाल भैरों मंदिर में हजारों की संख्या में देशभर से श्रद्धालु अपने कष्टों के निवारण के लिए बाबा के दरबार में हाजिरी भरते हैं। महतों के अनुसार यहां लाल यति भैरों बाबा साक्षात विराजमान हैं। इस मंदिर में शीश निभाने से भूत प्रेतों व रोगों से मुक्ति मिलती है।
महंत दिलबाग गिर ने बताया कि इस मंदिर के समीप शनि मंदिर का निर्माण किया जाने लगा था। शनि देव की मूर्ति भी स्थापित कर दी थी, लेकिन मंदिर में नुकसान होने लगा। जिस पर संतों ने बताया कि यह दोनों देव गर्म प्रवृति के हैं इन्हें एक साथ स्थापित नहीं किया जा सकता। जिसके बाद शनि मंदिर का दूसरी जगह पर निर्माण करना पड़ा। भैरों अष्टीम के मौके पर मूर्ति के अनावरण के उपरांत विशाल भंडारे का आयोजन किया गया।