
हिमाचलियों की पार्टनरशिप फर्म अब धारा 118 से बाहर
लैंड रिफॉर्म एक्ट तभी लगेगा, जब कोई गैर हिमाचली पार्टनर बनेगा
हिमाचल दस्तक, राजेश मंढोत्रा। शिमला
राज्य में पंजीकृत कृषकों यानी हिमाचलियों की पार्टनरशिप फर्म पर अब टेनैंसी एवं लैंड रिफॉर्म की धारा 118 नहीं लगेगी। राजस्व विभाग ने ये राहत देते हुए शर्त लगाई है कि ऐसी फर्म को ये रियायत तभी तक मिलेगी, जब तक इसमें कोई गैर हिमाचली बतौर पार्टनर एंटर नहीं करता। यदि कोई गैर कृषक इसमें आता है, तो फर्म को धारा 118 के तहत सारी मंजूरियां लेनी होंगी। संयुक्त सचिव राजस्व राकेश मेहता की ओर से जारी इस क्लैरिफिकेशन में ये भी कहा गया है कि इस बारे में लॉ से भी राय ली गई थी और लॉ ने भी ये मंजूरी दे दी है।
ये क्लैरिफिकेशन उद्योग विभाग ने मांगी थी, क्योंकि धारा 118 की शर्त के कारण सेंट्रल कैपिटल इन्वेस्टमेंट सब्सिडी स्कीम 2013 के केस अटके हुए थे। इनमें पांवटा के कुछ होटल भी शामिल थे। ये मसला कई वर्षों से सेटल नहीं हो रहा था और लोगों को धारा 118 में प्रापर्टी सरकार में वेस्ट होने के बाद कोर्ट जाना पड़ रहा था। इससे पहले विधि विभाग दो बार इस मसले पर राय दे चुका था और ये दोनों ओपिनियन एक दूसरे से जुदा थे। लेकिन इस बार इन्वेस्टर मीट के बहाने सरल हो रही प्रक्रियाओं में ये मसला सुलझ गया।
पार्टनरशिप पर ये कहा था हाईकोर्ट ने…
इस बारे में हिमाचल हाईकोर्ट ने भी इसी साल फैसला दिया था कि हिमाचलियों की पार्टनरशिप फर्म पर धारा 118 लगाने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि यदि ये फर्म भंग भी हो जाए, तो इसकी संपत्ति इन्हीं के स्वामित्व में बंटनी है। कंपनी या सोसाइटी से एकदम उलट पार्टनरशिप फर्म अपने पार्टनर्स से ही लाइबिलिटी जनरेट करती है।
कंपनी या सोसाइटी को राहत नहीं
इस फैसले के बावजूद कंपनी या सोसाइटी को ये राहत नहीं मिलेगी। कानूनन कंपनी या सोसाइटी को एक अलग एंटीटी माना जाता है। अलग पहचान और असीमित दायित्व होने के कारण इन दोनों को धारा 118 में आना होगा। इससे हिमाचलियों को नुकसान ये है कि सभी डायरेक्टर हिमाचली होने के बावजूद धारा 118 से पीछा नहीं छूटता।