आज बड़का कोई तड़का नहीं लगाएगा आज बड़का भड़का हुआ है। हुआ यह कि बड़के ने फतेहपुर में सुजान सिंह पठानिया को अंतिम विदाई देणे के लिए जाणा था। जेब मे धेला नहीं था तो सड़क किनारे खड़ा किसी भी ऐसे पोलिटीशयन की राह ताक रहा था जो फतेहपुर जा रहा हो? खैर, इक्क गड्डी आई तो बीच मे बैठे इक्क नेते ने बड़के को पछाण लिया और बिठा लिया। रस्ते में इक्क भाजपा नेते का घर आया तो गड्डी वाले नेते ने ब्रेक लगा दी और बोल्ला कि बड़कया, बड्डे नेता जी के साथ चलते हैं। बड़का बी गड्डी से उतरा और बड्डे नेता जी के घर मे ऐसे घुसा मानों नानके आया हो। पर एकदम से बड़का डर के खड़ा हो गया। अंदर बड्डे नेता जी उच्ची-उच्ची आवाज में कुछ लोकों की मां-बहण कर रहे थे।
अचानक नेता जी के कमरे से चार-पंज बंदे खज्जल हालत में बाहर भागते हुए दिखे। बड़का ठहरा गाजला (शरारती) आदमी। बड़के का कीड़ा जाग गया। अंदर जाते ई बड्डे नेता को पूछता कि क्यों सवेरे-सवेरे गेड़ा दिया हुआ था? कौण थे यह भूत जिनको भगाया? जवाब आया कि यह वो सियासी कंजर थे जो फतेहपुर के बाई इलेक्शन में टिकट के लिए गुहार लगाणे आए हुए थे। अब देख न बड़कया, पठानिया जी को अंतिम संस्कार की अभी आग भी नहीं दी है, इनको टिकट की आग लगी हुई है। मैंने थोक में ही ठोक दिए। बोल, क्या कोई गलत किया? अब बड़का यह सुण कर ऐसा भड़का कि शाम तक अपसेट रहा। कहां तड़का लगाता था, आज इन लोगो की हरकतों से भड़का हुआ घूम रहा है। यह टिकटार्थी जरूर थे, जिंदा भी थे, पर इनकी आत्माएं मरी हुई मिलीं…