700 से 1000 रुपये करेंगे प्रति बंदर पकडऩे की राशि : वन मंत्री,वर्मिन घोषित होने के बावजूद बंदरों को लेकर विभाग भी अस्पष्ट
हिमाचल दस्तक ब्यूरो। शिमला: राज्य में बंदरों के उत्पात से 548 पंचायतें परेशान हैं। ये पंचायतें अतिसंवेदनशील घोषित हैं। बंदरों के कारण बागवनी और कृषि विभाग ने 334 करोड़ का नुकसान रिकार्ड किया है। ये आंकड़े मानव बंदर टकराव पर शिमला में आयोजित वन विभाग की एक कार्यशाला में सामने आए हैं।
बताया गया कि वन विभाग ने 2016 में 38 तहसीलों में बंदरों को वर्मिन घोषित करने के बाद अब 2019 में 91 तहसीलों, उप तहसीलों व नगर निगम शिमला में एक वर्ष की अवधि के लिए वर्मिन घोषित किया हुआ है। लेकिन बावजूद इसके लिए किसी ने बंदरों को नहीं मारा। अब लोग जहर देकर या अन्य तरीकों से मार रहे हैं, तो भी विभाग का रुख स्पष्ट नहीं है। कार्यक्रम की अध्यक्षता वन मंत्री गोबिंद ठाकुर ने की। उन्होंने कहा कि किसानों को बंदरों की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए इस समस्या का कारगर तरीका नसबंदी है। प्रदेश के आठ वानर नसबंदी केंदों में वन विभाग अब तक एक लाख 57 हजार वानरों की नसबंदी कर चुका है।
वन विभाग बंदरों को पकडऩे के लिए स्थानीय लोगों को भी उचित प्रशिक्षण देगा। वन मंत्री ने कहा कि बंदरों को पकडऩे के लिए दी जाने वाली धनराशि को सात सौ रुपये से बढ़ाकर एक हजार रुपये प्रति बंदर दिया जाएगा। अति संवेदनशील 548 पंचायतों में बैठक कर के स्थानीय युवाओं को वानरों को पड़कने के लिए प्रशिक्षण देने की बुहत जरूरत है। वन मंत्री ने कहा कि प्रदेश में 1100 वानर हॉट स्पॉट की पहचान की गई है।
वन विभाग समय-समय पर गणना के माध्यम से बंदरों की संख्या पर निगरानी रख रहा है। अतिरिक्त मुख्य सचिव राम सुभग सिंह ने कहा कि वन विभाग बंदरों की समस्या से निजात के लिए अनेक प्रयास कर रहा है और इस कार्यशाला के माध्यम से मिले अनेक सुझावों को वन्य प्राणी प्रभाग वानरों की समस्या के लिए कारगर कदम उठाएगा। वन्य प्राणी विंग की प्रमुख डा. सविता ने भी उठाए गए कदमों की जानकारी दी।
शिमला को बनाया जाएगा डस्टबीन फ्री : कुसुम सदरेट
पार्षद डॉ. किमी सूद ने किया बंदरों को जहर देकर मारने का विरोध
शिमला शहर को शीघ्र ही डस्टबीन फ्री बनाया जा रहा है। कार्यशाला में शिमला की मेयर कुसुम सदरेट ने कहा कि शहर में कई स्थानों में लोग डस्टबिनों में खाने का सामान डाल देते हैं और बंदर वहीं से खाना शुरू कर देते हैं। उन्होंने वन विभाग से भी आग्रह किया है कि विभाग भी शहर के लिए ऐसा प्लान तैयार करें कि शहर के बंदर जंगलों की ओर चले जाएं। नगर निगम की पार्षद डॉ. किमी सूद ने विभाग को कई बहुमुल्य सुझाव दिये। डा. किमी ने वन विभाग से आग्रह किया कि कम से कम जहर देकर बंदरों को मारने की प्रक्रिया को रोका जाए। इस पर कोई कार्रवाई न होने को भी उन्होंंने हैरानी भरा बताया। कार्यशाला में शिमला नगर निगम के पार्षदों और प्रदेश भर से आए नगर परिषद और पंचायातों के प्रतिनिधियों से भी बंदरों से छुटकारा पाने के सुझाव मांगे।