हिमाचल दस्तक ब्यूरो। शिमला
वर्तमान में राज्य में एनडीपीएस अधिनियम के लगभग 6232 मामले लंबित हैं। यह हालांकि एक बड़ी संख्या नहीं है, लेकिन लाखों निर्दोष लोग इन अभियुक्तों के कारण पीडि़त हुए हैं। पुलिस जांच के दौरान कुछ खामियों के रह जाने की वजह से न्यायालयों में काफी समय से लंबित एनडीपीएस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों का त्वरित और प्रभावी निपटारा नही हो पाता।
इस खतरे को रोकने के लिए एनडीपीएस अधिनियम, 1985 को कड़े प्रावधानों के साथ लागू किया गया था और इस संबंध में कई अन्य अधिनियम भी पारित किए गए हैं, लेकिन केवल अधिनियम पारित करना पर्याप्त नहीं है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी ने यह बात रविवार को प्रदेश हाईकोर्ट के सभागार में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला के दौरान कही।
हाईकोर्ट, विधिक सेवा प्राधिकरण व राज्य न्यायिक अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य न्यायधीश ने अपने उद्घाटन भाषण में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि नशाखोरी एक सामाजिक बुराई है और एक वैश्विक घटना है।
उन्होंने कहा कि नशाखोरी को अदालतों, पुलिस व अन्य हित धारकों द्वारा एक-दूसरे पर दोषरोपण करके नहीं मिटाया जा सकता परंतु इसके उन्मूलन के लिए सभी हित धारकों को एक-दूसरे की समस्या को समझना होगा और इस समस्या से निपटने के लिए मिलकर कोशिश करनी होगी।
उन्होंने कहा कि हालांकि हम लंबे समय से नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ लड़ रहे हैं, लेकिन हमने अभी भी वांछित परिणाम हासिल नहीं किए हैं और समस्या बढ़ ही रही है। इस अवसर पर प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीशो में न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान, विवेक सिंह ठाकुर संदीप शर्मा, चंदर भूसन बारोवालिया और ज्योत्सना रिवाल दुआ भी उपस्थित थे।
जून में उखाड़ी जाए भांग
वर्कशॉप में बतौर वक्ता भाग लेते हुए रिटायर्ड डिस्ट्रिक्ट व सेशन जज डॉ. जेएन बारोबालिया ने कहा कि पुलिस व अन्य एजेंसियां नशा रोकने के लिए भांग उखाड़ो अभियान चलाती हैं। यह अभियान सितंबर माह में चलाया जाता है, लेकिन असल में यह अभियान जून महीने में चलाया जाना चाहिए। जून महीने में भांग व अन्य पौधे उखाड़ फेंकने से दोबारा उन पौधों के उगने की संभावनाए नहीं रहेंगी।
6 जिलों के डीसी एसपी रहे मौजूद
एनडीपीएस अधिनियम के तहत शिमला, कांगड़ा, कुल्लू, मंडी, ऊना और चंबा में मामलों की बढ़ती पेंडेंसी को ध्यान में रखते हुए कार्यशाला का आयोजन किया गया था। कार्यशाला का उद्देश्य नशाखोरी को समाप्त करने, एनडीपीएस अधिनियम के तहत मामलों से निपटने के दौरान विभिन्न हितधारकों के सामने आ रही समस्याओं को उजागर करने व हल निकालने के लिए एक रणनीति तैयार करना था।