हिमाचल दस्तक ब्यूरो। शिमला : प्रदेश उच्च न्यायालय ने आयुर्वेदिक विभाग की ओर से जारी आदेशों को रद कर दिया, जिसके तहत सेवानिवृत्त आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर की पेंशन को इस कारण बंद करने को कहा था कि तदर्थ पर दी गई सेवा पेंशन के लिए नहीं गिनी जाएगी। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने रामकृष्ण शर्मा द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के पश्चात यह निर्णय सुनाया।
याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार 11 अक्तूबर, 2019 को जिला आयुर्वेदिक ऑफिसर बिलासपुर ने अकाउंटेंट जनरल को कहा था कि प्रार्थी की पेशन को बंद कर दिया जाए, क्योंकि प्रार्थी की सेवाओं को 15 मई, 2003 के पश्चात नियमित किया गया है। राज्य सरकार के वित्त विभाग द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार प्रार्थी पुरानी पेंशन स्कीम के अंतर्गत पेंशन लिए जाने का हक नहीं रखता है। वित्त विभाग द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार वह केवल कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड के अंतर्गत पेंशन लेने का हक रखता है। प्रार्थी जो कि 23 जनवरी, 1999 को तदर्थ के आधार पर आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर के तौर पर नियुक्त किया गया था कि सेवाओं को 25 नवंबर, 2006 को नियमित किया गया था। प्रार्थी 31 दिसंबर, 2011 को सेवानिवृत्त हो गया था।
इसके बाद वह पुरानी पेंशन स्कीम के तहत नियमित पेंशन ले रहा था। हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय व प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के बाद यह पाया कि प्रार्थी को पेंशन दिए जाने के लिए लिया गया फैसला कानूनी तौर पर सही था। कानूनी तौर पर किसी भी तरह के संशोधन की आवश्यकता नहीं है, विशेषता तब जब इस बाबत कानून स्पष्ट हो चुका है कि अस्थायी तौर परए अनुबंध के आधार पर व तदर्थ के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए गिना जाएगा।
प्रार्थी तदर्थ के आधार पर दी गई सेवाओं के बावजूद पेंशन लेने का हक रखता है। एकल पीठ ने कहा कि जिला आयुर्वेदिक ऑफिसर बिलासपुर द्वारा पेंशन को बंद करने बाबत भेजा फरमान कानूनी तौर पर गलत है। हाईकोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है अनुबंध अथवा तदर्थ के आधार पर कम वेतन में दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है। इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यापारिक व्यवहार को दर्शाता है। जिसकी कानून अनुमति प्रदान नहीं करता है।