बैजनाथ में आज भी मौजूद है रावण का मंदिर व कुंड
हिमाचल दस्तक, कमल गुप्ता। बैजनाथ
बैजनाथ भगवान भोलेनाथ के मंदिर व खीर गंगा घाट के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि बैजनाथ में आज भी रावण का मंदिर है और कुंड भी मौजूद है। जहां लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने नो सिरों को काटकर कुंड में जला दिया था। शिव नगरी बेशक रावण को भूल गई, लेकिन भगवान शिव अभी भी अपने प्रिय भक्त रावण की भक्ति को नहीं भूल सकते हैं।
रावण की तपोस्थली रही बैजनाथ में इसका जीता जागता उदाहरण दशहरा पर्व है। जहां पूरे देशभर में दशहरे को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और रावण, मेघनाथ व कुम्भकर्ण के पुतले जलाए जाते है, वहीं बैजनाथ एक ऐसा स्थान है, जहां दशहरे के दिन रावण का पुतला नहीं जलता। अगर कोई जलाता है, तो उसकी मौत हो जाती है। इसीलिए रावण का पुतला भी कई वर्षों से बैजनाथ में नहीं जलाया जाता है। माना जाता है है कि शिव मंदिर में मौजूद शिवलिंग वही है, जिसे लंकापति अपने साथ लंका ले जा रहा था और माया के प्रभाव से शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया था।
वर्ष 1965 में जलाया गया था रावण का पुतला
जानकारी मुताबिक वर्ष 1965 में बैजनाथ में एक भजन मंडली में शामिल कुछ बुजुर्ग व लोगों ने उस समय बैजनाथ शिव मंदिर के ठीक सामने रावण का पुतला जलाने की प्रथा शुरू की। जिसके बाद भजन मंडली के अध्यक्ष की मौत हो गई और अन्य सदस्यों के परिवार पर घोर विपत्ति आई। इसके 2 साल बाद बैजनाथ में दशहरा पर्व मनाना भी बंद कर दिया गया। इसके अलावा बैजनाथ से 2 किलोमीटर दूर पपरोला के ठारु गांव में भी कुछ वर्ष रावण का पुतला जलाया गया लेकिन वहां भी कुछ समय बाद दशहरा पर्व को मनाना बंद कर दिया गया।
नहीं है कोई सुनार की दुकान
बैजनाथ में वर्तमान में करीब 500 दुकानें है लेकिन विचित्र बात है कि यहां कोई भी सुनार की दुकान नहीं है। माना जाता है कि कोई यहां सुनार की दुकान खुलता है, तो उसका व्यापार तबाह हो जाता है या दुकान बहन चली जाती है और सोना भी काला हो जाता है। जानकारी अनुसार यहां दो बार सुनार की दुकान खोली गई लेकिन दुकान नहीं चल पाई। यहां ऐसा क्यों होता है यह किसी ने को नहीं पता।
क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी
इस बाबत मंदिर के पुजारी सुरेन्द्र आचार्य ने बताया कि बैजनाथ शिव नगरी रावण की तपोस्थली है। महाबली रावण ने यहां कई वर्ष तपस्या की थी। उन्होंने बताया कि शायद इसी प्रभाव के चलते रावण का पुतला जलाने का जिसने भी प्रयास किया वह मौत का शिकार हो गया। यही कारण है कि बैजनाथ में दशहरे के दिन पुतले जलाने की प्रथा का अंत हुआ।
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