शैलेश सैनी। नाहन
हिमाचल प्रदेश में होने वाले उपचुनाव के टाले जाने पर सेब बागवानों की अनदेखी भारी पड़ गई है। सेब सीजन के बुरी तरह पिट जाने को लेकर प्रदेश का सेब बागवान सरकार से रुष्ट चल रहा है। वहीं ऐसा पहली बार हुआ है कि इस अनदेखी और बागवानी मंत्री के दिए गए बयान के बाद 30 से अधिक संगठन पहली बार एकजुट हो चुके हैं।
आपको यहां यह भी बताना जरूरी है कि मंडी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत लाहौल-स्पीति, कुल्लू, रामपुर, मंडी और किन्नौर का क्षेत्र आता है। यहां के बागवानों और किसानों का मुख्य आर्थिकी का साधन सेब रहता है, मगर कुदरत की मार और बाजार में सेब के दाम बुरी तरह पिट जाने से प्रदेश का किसान मायूस हुआ है, तो वहीं पहले से ही किसान आंदोलन पूरे देश में उठान पर है।
यही वजह है कि सरकार करीब 49 प्रतिशत सेब बाहुल क्षेत्र के बागवानों की नाराजगी को भांप चुकी थी, जिसका सीधे-सीधे खामियाजा इन उपचुनाव में निश्चित रूप से भुगतना लाजिमी था।
सरकार यह भी जानती है कि यह उपचुनाव 2022 के चुनाव का सेमीफाइनल मैच है। एक लोकसभा और तीन विधानसभा क्षेत्र की सीटें प्रदेश के कुछ जिलों को छोडक़र बाकी जिलों के जद में आती हैं।
ऐसे में यदि सरकार कोई भी सीट हारती है तो उसका प्रभाव 2022 के चुनावों पर बड़ा ही घातक रूप से होगा। सेब का मुद्दा कांग्रेस को संजीवनी के तौर पर मिला था। इसके साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का सिपंथी वोट भी कांग्रेस के फेवर में था, मगर ऐन मौके पर उपचुनाव को टाले जाने के पीछे सरकार की घबराहट साफ नजर आई और उपचुनाव टल गए।
विभिन्न संगठनों से जुड़े किसान और बागवान देशराज काल्टा, जगत नेगी, देवराज ठाकुर, मांटा, धर्मवीर आदि का कहना है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने बीते साढ़े तीन वर्षों में सेब के किसानों के लिए कोई आधारभूत ढांचा तैयार नहीं किया है।
सरकार द्वारा ऊपरी क्षेत्र में कहीं भी ऐसे बड़े कोल्ड स्टोर नहीं बनाए गए हैं, जहां किसान अपने सेब को स्टॉक कर सकें। तो वहीं अंबानी और अडानी ने भी मौके का फायदा उठाते हुए सेब खरीद का भाव 16 रुपए सीधे तौर पर कम कर दिया। इसको देखते हुए छोटे सेब खरीदारों ने भी सेब का खरीद मूल्य और गिरा दिया।
हैरानी की बात तो यह है कि दिल्ली, नोएडा जैसे बड़े-बड़े शहरों में जो बड़े मॉल हैं, वहां पर अडानी सेब 280 से 290 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है, जबकि प्रदेश के किसान का लेबर आदि सब खर्चे मिलाकर एक पेटी के ऊपर कुल खर्चा ही 400 से 500 रुपए तक आ रहा है।
मंडी में सेब की पैकिंग 500 से 700 रुपए में बिक रहा है, जिसके चलते किसानों को अपना सेब बोरे और कट्टों में बेचना पड़ रहा है। इसके साथ-साथ अधिकतर सेब बाहुल क्षेत्रों में न तो पक्की सडक़ें हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं। ऐसे में सेब बाहुल क्षेत्रों का किसान साढ़े तीन वर्षों की अनदेखी को लेकर न केवल उपचुनाव तक बल्कि 2022 के लिए काफी पैना नजर आ रहा है।
यही वजह रही कि सेमिफाइनल में हार के अंदेशे के चलते सरकार उपचुनाव के पक्ष में नजर नहीं आ रही है। तो वहीं कांग्रेस भी इस मुद्दे को कैश करने में बैकफुट पर नजर आ रही है।
बहरहाल अब यह तो तय है कि इस बार का सेब और साथ में प्रदेश के कर्मचारियों की नाराजगी का मुद्दा सरकार के बचे एक वर्ष के कार्यकाल के लिए नाकाफी नजर आता है। 2022 इन बड़े कारणों के चलते प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए खतरे की घंटी का अलार्म भी बजा रहा है।