हिमाचल दस्तक ब्यूरो। हमीरपुर
प्रदेश के बड़े मंदिरों में शुमार बाबा बालक नाथ मंदिर ट्रस्ट में 6 वर्षों में 9 मंदिर अधिकारी बदले गए और अब 10वें का तबादला भी तैयार है। करीब 30 करोड़ सालान अधिकारिक चढ़ावे वाले इस मंदिर का चढ़ावा ही यहां आस्था पर अविश्वास व साजिशों षड्यंत्रों की भेंट निरंतर चढ़ रहा है। यहीं एक कारण है कि सरकार किसी भी मंदिर अधिकारी पर भरोसा नहीं कर पा रही है। जिसके कारण कार्यकाल पूरा होने से काफी पहले ही मंदिर अधिकारियों को यहां से रुखस्त होना पड़ रहा है। कारण साफ है जो ईमानदारी से अपना काम करना चाहते हैं, उन्हें यहां कि व्यवस्था काम करने नहीं देना चाहती है और जो व्यवस्था के इशारों पर चलता है उसकी नौकरी हमेशा दांव पर रहती है। ऐसे में कोई तैनात मंदिर अधिकारी टिके तो कैसे टिके।
आलम यह है कि मंदिर अधिकारी को ऊपर से लेकर नीचे तक सबकी साजिशों षड्यंत्रों का शिकार होना पड़ता है क्योंकि जिम्मेदारी उसकी रहती है। 16 जनवरी 1987 से मंदिर ट्रस्ट के गठन के पहले दिन से ही यहां चढ़ावे के दुरूपयोग के आरोप लगते रहे हैं। वित्तिय अनियमितताओं के कारण करीब 50 से अधिक मामले इस ट्रस्ट के कोर्ट-कचहरियों में लटक रहे हैं। जिन पर लाखों रुपए चढ़ावे का बजट होम किया जा रहा है। अधिकांश नेता टाइप कर्मचारी अपने काम के बजाए हर उस काम को जानते हैं, जिससे वह प्रशासनिक अधिकारियों पर हावी और प्रभावी रहे। ऐसे में किसी मंदिर अधिकारी का कार्यकाल पूरा न कर पाना स्वाभाविक है।
1987 के बाद इस मंदिर में 26 मंदिर अधिकारी रह चुके हैं, जिनमें से 2013 तक तो लगभग सभी मंदिर अधिकारी अपना कार्यकाल पूरा करते रहे हैं, लेकिन 2013 के बाद ऊपर वालों का धौंस व दबाव और नीचे वालों की साजिशें व षड्यंत्र इस कद्र हावी व प्रभावी रहे के मात्र 6 वर्षों में 9 मंदिर अधिकारियों को चलता कर दिया गया और अब 10वां मंदिर अधिकारी जाने को तैयार है।
वर्तमान अधिकारी ओपी. लखनपाल से जब कुर्सी पर न टिक पाने का राज जानना चाहा तो उन्होंने पहले तो कोई प्रतिक्रिया देने से साफ इंकार कर दिया लेकिन बाद में उन्होंने खुलासा किया कि मंदिर में वर्क कल्चर खत्म होने के कारण यहां किसी भी अधिकारी के लिए काम करना मुश्किल है।
साजिशों और सिफारिशों से प्रोमोशन हासिल करने वाले कर्मचारियों में न अनुशासन है न वर्ककल्चर है। जहां जरूरत है वहां कर्मचारी मौजूद नहीं हैं और जहां जरूरत नहीं उस कुर्सी पर लाखों की पगार डकार रहे कर्मचारी बिना किसी जरूरत के डटे पड़े हैं। चलते-चलते मंदिर अधिकारी ने यह खुलासा भी किया कि उनका सारा कैरियर बेदाग रहा है, अब वह नहीं चाहते कि रिटायरमेंट से पहले वह किसी साजिश या षड्यंत्र का शिकार हो। इसलिए यहां से जाने में ही अपनी बेहतरी समझते हैं। एक तरह से मंदिर अधिकारी ने स्वयं पुष्टि कर दी है कि वह अब अपने पद से जाना चाहते हैं।