पॉलिटिकल ‘पेन’, टेक ऑफ नहीं कर पा रही कैंपेन
अपनों की कमियां ही अपनों पर भारी
हिमाचल दस्तक : उदयबीर पठानिया : धर्मशाला के उपचुनाव में सब कुछ उप ही है, मुख्य कुछ नहीं। चाहे आप भाजपा के बही-खाते खोल लीजिए, चाहे वोटों की खाली पड़ी तिजोरी से जूझ रही कांग्रेस को। सब कुछ सेकंडरी ही है, प्राइमरी कुछ नहीं। यह हाल तब है जब इन दोनों दलों ने सियासी हवाईपट्टी पर खड़े अपने-अपने पायलटों विशाल नेहरिया और विजय इंद्र कर्ण को जहाजों के कॉकपिट में बिठा दिया है।
इंजन स्टार्ट हैं, इनके साथ उडऩे वाली नेताओं की जमातें जहाजों में बैठ गईं हैं, बस वोटो के रनवे पर यह टेक ऑफ नहीं कर रहे।सबसे पहले सत्तारूढ़ भाजपा की बात करें तो अभी तक भगवा वायुसेना के चीफ एयर मार्शल सीएम जयराम ठाकुर ने पॉलिटिकल एयरपोर्ट धर्मशाला में मॉक ड्रिल न तो नामांकन के वक्त की और अभी भी वह आए नहीं हैं।
कांगड़ा के भाजपाई आसमान के हवाई विंग कमांडर शांता कुमार भी हवाओं के रुख को परखने के लिए वक्त नहीं निकाल पाए हैं। एक दौर में माइनस कांगड़ा सरकार बनाने के लिए तैयार हुए प्रो. प्रेम कुमार धूमल भी अभी तक माइनस ही चले हुए हैं। इन हालात में हालाते-हाजिरा यह है कि सरकार में बैठे को-पायलट यानी मंत्रीगण भी कोई ऐसी सियासी एयरोनॉटिकल गणना नहीं कर पा रहे हैं जिससे सियासी मौसम में पसरे आजाद और कांग्रेस प्रत्याशी के धुओं और धुंध में सही दिशा निर्धारण कर सकें। पहली दफा किसी भी उपचुनाव में सत्ता पक्ष की ऐसी लापरवाहियां और ढीलापन सामने आ रहे हैं कि हर कोई भौचक है।
कहने को भाजपा ने भी कांग्रेस को घेरने के लिए व्यूह रचनाएं कर दीं हैं, मगर यह मायाजाल की जगह भृमजाल ज्यादा बन गया है। हैरानी की बात यह है कि सबका साथ-सबका विकास नारा लगाने वाली भाजपा सबका भरोसा अभी तक हासिल नहीं कर पाई है। राजपूत वोट बैंक के पास रिझाने को राजपूत नेता नहीं जा रहे। जो आजाद ओबीसी प्रत्याशी जी को जंजाल बने हुए हैं, उनके सामने ओबीसी के नाम पर राजनीति और पद हासिल करने वाले कांगड़ा के ओबीसी नेता फेल हो चुके हैं।
भाजपा में ही हल्ला है कि जो एक आदमी को न मना सकें वो पूरे समुदाय के नेता कैसे हो सकते हैं ? क्यों उनको ओबीसी समुदाय अपना नेता मानें ? कहीं न कहीं भाजपा की टीम में कांग्रेस के साथ स्कोर सेटलमेंट की जगह इसके कद्दावर नेताओं में आपसी स्कोर सेटलमेंट की खबरें भी हैं। सरकार की छवि की जगह अगले तीन सालों में कांगड़ा के खाते से अपनी अपनी-अपनी छवि चमकाने की कोशिशें भी हो रहीं हैं।
आज तक तो दिखे नहीं…
प्रथा सजा भी हो सकती है। भाजपा के जितने भी मंत्री जनता दरबार मे जा रहे हैं, उनके सामने यह सवाल खड़ा हो जा रहा है कि दो सालों में आप लोग कभी आज तक हमारा दुख जानने के लिए धर्मशाला सचिवालय में तो बैठे नहीं, अब वोटों के लिए हमारे पास क्यों आ रहे हो ? याद रहे कि वीरभद्र-धूमल सरकारों के वक़्त में मंत्री यहां बैठा करते थे। पर बीते दो साल में माइनस किशन कपूर एक भी मंत्री ने यहां बैठने का वक्त नहीं निकाला है।
इन्वेस्टर मीट का ही जिक्र…
यह उपचुनाव कहीं न कहीं भाजपा के लिए आत्म अवलोकन की वजह भी बन गया है। मंत्री कहीं भी यह नहीं कह-बोल पा रहे हैं कि जिन मंत्रालयों के वह मुखिया हैं, उन मंत्रालयों ने बीते दो साल में धर्मशाला के लिए क्या किया ? बस चंद रोज बाद होने वाली इन्वेस्टर मीट का जिक्र वह कर रहे हैं । जनता भी उल्टा सवाल दाग रही है कि मेहमानवाजी ही करवाओगे या फिर कोई मोटी इन्वेस्टमेंट धर्मशाला को भी दिलवाओगे ? स्मार्ट सिटी का भटठा तो बैठ ही गया है !
जो चाहिएं, वे हैं नहीं…
भाजपा के खाते से सही मायनों में दो ही पॉलिटिकल गिफ्ट आज तक धर्मशाला को मिले हैं। पहला वो ट्रांसफर केस था, जिसमे शांता कुमार एजुकेशन बोर्ड को शिमला से ट्रांसफर करके धर्मशाला लाए थे । दूसरा है, क्रिकेट स्टेडियम,जो अनुराग ठाकुर ने बनवाया था। इनसे धर्मशाला की इकोनॉमी में बहुत बड़ा फर्क आया है। पर अब न धूमल फैमली दिख रही है न शांता कुमार। उलटा यह आरोप लग जा रहा है कि धर्मशाला तो दूर की बात, जिला कांगड़ा से ही सब बाहर जा रहा है।
हाथ को नहीं मिल रहा हाथ कैसे हो चुनावी विकास
नानक दुखिया सब संसार, इन पंक्तियों की तरह कांग्रेस को भी दुख ही नजर आ रहा है। दर्द इतना बेदर्द हो गया है और इसको सहन करना मजबूरी बन गया है। हाथ वालों को हाथ नहीं दिख रहा है। वजह भी वाजिब है। कांग्रेस ने पार्टी सिंबल विजय इंद्रकर्ण को दिया है। मगर इस सिंबल को 2022 के लिए भी अपना सिंबल बनाने के लिए भाजपा के साथ जंग भी सिम्बोलिक बनती नजर आ रही है। कांगड़ा की जंग को जीतने के लिए भाजपा से अलग कांग्रेसियों ने मजबूरी में या तो पिटे हुए चेहरों को आगे किया है या फिर उन सियासी माई के लालों को जो बीते विधानसभा चुनावों में भाजपा की प्रचंड लहर को अंगूठा दिखाते हुए हाथ की ताकत बने थे।
कांग्रेस के पास सिर्फ दो मौजूदा विधायक आशीष बुटेल और पवन काजल ही हैं । यह दोनों यहां पर तम्बू-बम्बू गाड़ कर बैठे हुए हैं। बकाया या तो लड़कर हारे हुए हैं, या फिर जनता के हाथों बुरी तरह नकारे गए हुए हैं। सीएलपी मुकेश अग्निहोत्री चंद दिन के प्रवास से आस जगाकर लौट गए तो अब फील्ड को वह पीसीसी चीफ कुलदीप राठौर संभाल रहे हैं,जिन्हें धर्मशाला के पूर्व विधायक सुधीर शर्मा ने सियासत में नकारा खिताब दे दिया था। बिलासपुर से सुरेश चंदेल को बुला लिया गया है।
मीडिया प्रबंधन के लिए हमीरपुर से दीपक राज शर्मा को बिठाया गया है। पार्टी में सब शांत रहे इसके लिए नई नियुक्तियां भी की जा रही हैं। सब कुछ वो हो रहा है,जिससे बड़े चेहरों पर शांति रहे। कोई ऐसा काम कांग्रेस की तरफ से जमीन पर नहीं हो रहा है, जिससे सत्ता की प्यास से तड़प रही कांग्रेस को जीत का अमृत गटकने का मौका मिल सके। कई जगह ऐसे प्रभारी लगाए जा रहे हैं,जिन्हें आम स्थानीय कार्यकर्ता ही खुद ‘पर भारी’ महसूस कर रहे हैं। ऐसे में विजयकर्ण भी जनता के दरबार में घूम तो जरूर रहे हैं, मगर घुमाने वालों की वजह से यात्रा गोल-गोल ही है।
कैसे करें राजतिलक की तैयारी…
धर्मशाला के आम कांग्रेसियों के गम भी कम नहीं हैं। वजह है धर्मशाला में बड़े नेताओं का जमावड़ा और जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी। टॉप लेवल से ग्राउंड लेवल के लिए हुक्म जारी हो रहे हैं,पर ग्रास रूट के कार्यकर्ता को एहमियत नहीं मिल रही। यही वजह है कि जमीनी कार्यकर्ता यह दुखड़ा रो रहे हैं कि कैसे करें राजतिलक की तैयारी,सिर पर बैठ गए हैं, पदाधिकारी…
झंडे हैं, पर डंडे नहीं
भाजपा से भिडऩे के लिए कांग्रेस के पास हल्के-फुल्के झंडे तो आ गए हैं,मगर इन्हें फहराने के लिए डंडे तक नहीं हैं। एक पालमपुर के नेता जी अपने जंगल से डंडों का इंतजाम कर रहे हैं तो झंडे फरफरा रहे हैं।
एक वो झंडे, एक ये…
खास बात यह है कि इस मर्तबा जो झंडे आए हैं उनका कम्पेरिजन कार्यकर्ता सुधीर शर्मा के झंडों से कर रहे हैं। इनको लेकर अंडर करंट भी है। इनका कहना है कि पहले के झंडे सिल्की थे,अब के झंडों के धागे इतने झीने हैं कि सब आर-पार दिखता है।