सियासी मारक मंत्रों पर भारी पड़ गया कुछ नेताओं का महामृत्युंजय जाप
हिमाचल दस्तक। उदयबीर पठानिया
यह खबर भाजपा की उस कब्र के अंदर की है, जिसे कुछ अपने ही खोद रहे थे। कब्र खुदी भी, पर इसमें भाजपा के जिन नेता को लिटाने की कोशिशे थीं, उनको बकाया दो-तीन नेताओं ने बचा लिया। दरअसल, चुनाव की व्यूहरचना में सरकार ने अपने खास सिपहसिलारों को तैनात कर दिया था। जातीय समीकरणों के आधार पर यह ड्यूटीज़ लगाई गईं थीं। चार सेक्टरों में धर्मशाला हल्के को बांटा गया था। पर हकीकत यह रही कि भाजपा को संजीवनी वो नेता दे गए जो संगठन और सरकार के साथ थे। नहीं तो दो साल पुरानी सरकार पर धब्बा लगना तय था।
ग्राउंड जीरो से जो खबरें आ रहीं हैं, वह भाजपा को माइनस साइड ले जाने वाली ही थीं। उद्योग मंत्री बिक्रम ठाकुर के जिम्मे ऊपरी धर्मशाला का इलाका था। यहां ठाकुर ने 3425 मतों की बढ़त दिलवा कर पलड़ा शुरुआती दौर मे ही भारी कर दिया। सेक्टर 2 में विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज इंचार्ज थे। यहां पर आजाद प्रत्याशी राकेश चौधरी को रोकने में कामयाबी तो मिली लेकिन मतांतर 1847 का ही रहा।
अगले सेक्टर में रमेश धवाला सारथी थे। यहां चौधरी ने ऐसी पटखनी दी कि कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेल दिया तो साथ ही भाजपा से 4485 मतों की टक्कर दे दी। चौथे और अंतिम सेक्टर चार में भाजपा की लीडर सरवीण चौधरी थीं। उनके साथ राकेश पठानिया भी मौजूद थे। यहां पर भाजपा को 3162 मतों की लीड मिली और भाजपा जीत गई। पर असल कहानी जो अंदरखाते रची जा रही थी वो अलग ही थी। स्टेज पर ड्रामा कुछ और था और पर्दे के पीछे की स्क्रिप्ट कुछ और।
ओबीसी बहुल सेक्टर में अगर जासूसों पर जासूस और नेता नही होते तो गड़बड़ तय थी और भाजपा की हार भी। एक सेक्टर में तो खुद भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने वक्त पर वक्त को संभालते हुए सेक्टर इंचार्ज को पीछे सरका कर विधायक को सर्वे-सर्वा बना कर जीत सुनिश्चित की। अलबत्ता जातीय समीकरणों के लिए सह प्रभारी नेता पार्टी की आड़ में अपना खेल खेलने में लगे हुए थे। एक सेक्टर में तो विधायक ने मुख्य चुनाव प्रभारी विपन परमार और सत्ती के साथ भाजपा का बेड़ा पार लगवाया और आजाद प्रत्याशी के घर की पंचायत में भाजपा को लीड दिलवाई।
विपिन परमार को भी निपटाने के लिए कोशिशें हुईं। डर यही था कि मंत्रिमंडल में जल्द सम्भावित फेरबदल में उनको निशाना बनाया जाए कि उनकी लीडरशिप में चुनाव हारा गया। इसी तरह चुनाव में सीएम जयराम ठाकुर को नीचा दिखाने के लिए कुछ चेहरे ऐसे भी बेनकाब हो गए जिनको सत्ता की चमक ठाकुर की हामी की वजह से ही मिली थी। अगर मारक मंत्रों का उच्चाटन हुआ तो महामृत्युंजय का मंत्र जप भी इसी चुनाव में हुआ। आखिरकार भाजपा जीत तो गई,पर चिंता की लकीरें भी कुछ नेताओं की वजह से पार्टी संगठन के चेहरों पर छूट गई हैं। वाह की जगह आह भी भाजपा के गले से निकल सकती थी,पर ऐन वक्त इलाज हुआ तो बीमारी का हल हो गया।
अपने बच्चे का झुकाव कांग्रेस की ओर
चुनावों में ही कुछ नेताओं पर यह आरोप लगे कि वह पार्टी की बजाय आजाद की मदद कर रहे थे। कहा गया कि यह जनता को समझाते थे कि राकेश तो भाजपाई ही हैं। जितवा दो, बाद में हम इनको भाजपा में जोड़ लेंगे। पर राकेश ने शुक्रवार को यह भ्रम भी तोड़ दिया। पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि अगर कल को कांग्रेस से उनको प्रस्ताव मिलता है तो वो विचार करेंगे। आखिर कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है।
कांगड़ा बिगड़ रहा है और
सियासी माहिर यह मान रहे हैं कि धर्मशाला में आजाद प्रत्याशी का हजारों मत ले जाना भाजपा के लिए सुखद संकेत नहीं है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि सरकार से अलगाव के संकेत दिख गए? हजारों लोगों ने आजाद को अपनी पहली पसंद बनाया। यह कहते हैं कि कांगड़ा का सियासी माहौल बिगड़ रहा है और भाजपाई ही इसे बिगाड़ रहे हैं। संभले नहीं तो फिर कांगडा से शुरू होने वाला शिमला में सरकार का रास्ता भी बिगड़ सकता है।