-
सरकार ने उपलब्ध करवाया टिश्यू प्लाजमिनोजेन एक्टिवेटर इंजेक्शन
-
ब्रेन स्ट्रोक का पता न चलने के कारण बच नहीं पा रहे इसके रोगी
अर्चना वर्मा। शिमला : आईजीएमसी ने ब्रेन स्ट्रोक जैसी घातक बीमारी से मरीजों को बचाने के लिए पहल की है। राज्य सरकार और स्वास्थ्य सचिव के सहयोग से आईजीएमसी के अलावा 17 अन्य स्वास्थ्य संस्थानों में अब ब्रेन स्ट्रोक का इलाज संभव हुआ है। इन स्वास्थ्य केंद्रों में टीपीए यानी टिश्यू प्लाजमिनोजेन एक्टिवेटर इंजेक्शन उपलब्ध करवाया गया है जो कि बिलकुल मुफ्त है। इसके जरिये ब्रेन स्ट्रोक के बाद अस्पताल आए मरीज को बचाना संभव होगा। यह इलाज एकदम मुफ्त में होगा।
राज्य सरकार ने आईजीएमसी सहित प्रदेश के कुल 17 बड़े अस्पतालों में यह इलाज निशुल्क कर दिया है। टिश्यू प्लांट एक्टिवेशन इंजेक्शन ब्रेन स्ट्रोक के दौरान दिमाग में बने खून के थक्कों को ठीक करता है और मरीज की जान बच जाती है। बाजार में इस इंजेक्शन की कीमत 60 हजार रुपये है, जबकि आईजीएमसी और 17 चिह्नित स्वास्थ्य केंद्रों में यह निशुल्क उपलब्ध है। इस इंजेक्शन से मरीज को वहीं बचाया जा सकता है, जिस अस्पताल में एमडी मेडिसन डॉक्टर हो और जहां सीटी स्कैन की सुविधा भी हो।
यदि मरीज 4 से 6 घंटे में अस्पताल पहुंच गया तो ही यह इंजेक्शन लगता है। मरीज समय पर न पहुंचे तो 6 घंटे के बाद यह इलाज काम नहीं आता। ब्रेन स्ट्रोक को कई नामों से भी जानते हैं। इसमें पक्षाघात, लकवा और अधरंग है। इसका कारण ब्रेन तक खून की सप्लाई प्रभावित होना है। दिमाग के जिस हिस्से में खून प्रभावित नहीं होता है, वहां अधरंग या ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। जैसे मुंह-हाथ का काम करना बंद करना बोलने या सुनने में दिक्कतें आती हैं।
हिमाचल में ब्रेन स्ट्रोक
पिछले कुछ वर्षों से ब्रेन स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस बीमारी में सबसे ज्यादा मौतें समय पर इलाज न मिलने के कारण होती हैं। यदि सही समय पर मरीज अस्पताल पहुंच जाए तो उसकी जान बच सकती है। प्रदेश में हर वर्ष 5 से 6 हजार ब्रेन स्ट्रोक के नए मरीज आ रहे हैं जिसमें से 1 से 3 हजार की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो जाती है। कारण यह है कि लोग खुद भी इस बीमारी के प्रति इतने संवेदनशील नहीं होते।
स्ट्रोक आखिर है क्या?
स्ट्रोक, जिसे ब्रेन अटैक भी कहते हैं, तब होता है जब मस्तिष्क तक ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाने वाली ब्लड वैसल ब्लॉक हो जाती हैं या फट जाती हैं। ऐसे में दिमाग की कोशिकाएं काम नहीं कर पातीं या नष्ट होने लगती हैं। इन कोशिकाओं से नियंत्रित होने वाला शरीर का हिस्सा प्रभावित होता है। 55 की उम्र के बाद स्ट्रोक का खतरा महिलाओं में हर 5 में से 1 को और पुरुषों में हर 6 में से 1 को होता है।
यदि मरीज को दौरा पडऩे के साथ मुंह टेढ़ा होने, हाथ का काम न करने, बोलने सुनने में दिक्कत जैसे लक्षण हैं, तो तुरंत ऐसे अस्पताल ले जाएं, जहां सीटी स्कैन की सुविधा हो।
-डॉ. जनकराज, वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक आईजीएमसी शिमला