रमेश सिद्धू : स्थानीय संपादक।
विचार मंथन :
कैफी आजमी के इस शेर के साथ चर्चा धर्म के नाम पर देश और समाज को बांट रही नफरती ब्रिगेड की सोच पर, जो हिंदू-मुसलमान के नाम पर हिंदुस्तानियों को बांट रही है। इस नफरती ब्रिगेड के सदस्य खुद को हिंदू भी कहते हैं और मुसलमानों के नाम से भी जाने जाते हैं। मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना… पंक्तियों को आज बेमानी बना दिया गया है। दिवाली और ईद मिलकर मनाते-मनाते हम आज इस दौर में आ पहुंचे हैं कि रामनवमी जैसे पावन अवसर पर एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए हैं।
दिनभर गुजरात, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, कर्नाटक और यहां तक कि जेएनयू जैसे संस्थान धर्म के बहाने खूनी झड़पों के साक्षी बने। अगले दिन नोएडा से खबर आती है कि एक न्यूज चैनल का एंकर और उसका परिवार रात को धर्म या आस्था के नाम पर मॉब लिंचिंग का शिकार होते-होते बचा। उसका कसूर सिर्फ इतना था कि उसने जागरण कर रहे कुछ लोगों से रात 11.30 बजे लाउड स्पीकर बंद करने का आग्रह किया। नफरती ब्रिगेड ने उसे देशद्रोही, पाकिस्तानी होने जैसे सर्टिफिकेट जारी करते हुए उसकी पत्नी के साथ भी अभद्रता की। यहां तक कि टीवी एंकर का छह साल का बेटा करीब एक घंटा भीड़ के हाथों में फंसा रहा। सोचिये जैसे हर रोज देश के लाखों-करोड़ों लोगों के दिल व दिमाग भीड़ की दहशत से घिरे रहते हैं, उसी भीड़ के हाथों में पड़कर उस छह वर्षीय मासूम के दिमाग पर कितना भयानक असर पड़ा होगा।
सवाल यह है कि धर्म तो हमेशा था और रहेगा, लेकिन ये धर्मांधता के बीज बीते कुछ सालों के दौरान क्यों हमारे दिमाग में रोप दिए गए हैं। कौन है जो धर्म के नाम पर हमें दंगाई और नफरती ब्रिगेड का हिस्सा बना रहा है। पिछले कुछ सालों के दौरान ऐसा क्या हो गया कि हमें अपना धर्म खतरे में लगने लगा। मुगलों ने हजारों साल इस देश पर राज किया, अंग्रेजों ने हमें दो सौ साल तक गुलाम बनाकर रखा, लेकिन कभी भी धर्म खतरे में नहीं आया। आज हम भीड़ का हिस्सा बन चल पड़ते हैं लाठी-डंडे और हथियार उठाकर धर्म के रक्षक बनने को। धर्म के नाम पर फैलाई जा रही इस नफरत को देखकर ताज्जुब नहीं अफसोस होता है, क्योंकि सभी धर्म तो सच्चाई और प्रेम की राह पर चलने का संदेश देते हैं।
ये इंसान में इंसान के प्रति नफरत फैलाने वाला नया धर्म आज के दौर में कौन सा पैदा हो गया जो कभी खुद का नाम हिंदू रख लेता है, कभी मुसलमान तो कभी सिख। कभी हिंदुओ जाग जाओ तो कभी मुसलमानो जाग जाओ के उद्घोष देता है, लेकिन इंसानों का लहू बहाने के बाद मालूम चलता है कि जागा तो इंसान के अंदर का हैवान है। इनके इस कृत्य को धर्म कह लें या मजहब पुकार लें, लेकिन इसका असल में कोई नाम नहीं है। इसका कोई नाम है तो वो है हैवानियत।
ये सिर्फ एक एजेंडा है, जिस क्षेत्र में जो बहुसंख्यक हैं उनके लोगों को दंगाई बनाने का उस क्षेत्र के अल्पसंख्यकों को डराने के नाम पर। इसके पीछे कार्य कर रही शक्तियां अपने मकसद में काफी हद तक कामयाब भी हो चुकी हैं। फिर चाहे उस क्षेत्र विशेष में अल्पसंख्यक हिंदू हों चाहे मुसलमान, लेकिन धर्म से दूर-दूर तक वास्ता न रखने वाले दंगाई उनका खून बहाकर नफरत फैलाने के अपने मंसूबों को कामयाबी से अंजाम देने में सफल हो रहे हैं।
लेकिन हमें ये याद रखना होगा कि ये किसी के नहीं होते, न अपने भगवान के न अपने खुदा के। ये न अपने धर्म के हैं, न ही अपने मजहब के। सिर्फ नफरत फैलाना इनका धर्म है, तो समाज को बांटना मजहब। रामनवमी के अवसर पर हुई हिंसा ये संकेत देने को काफी है कि हम बारूद के उस ढेर पर बैठे हैं जिसके नीचे सिर्फ और सिर्फ तबाही है। अगर उस बारूद के उस ढेर को समय रहते साफ नहीं किया गया तो जो विस्फोट होगा वो हमारे पास बचाने के लिए कुछ भी नहीं छोड़ेगा।