जीवन ऋषि : धर्मशाला
आखिर भिक्षु या साधु होने के सही मायने क्या हैं, यह सब साकार करके दिखाया है तिब्बत से साल 1997 में हिमाचल आए एक बौद्ध भिक्षु ने। इन बौद्ध भिक्षु का नाम है थरचिन गैलसन उर्फ जाम्यांग। जाम्यांग ने साल 2004 में टोंगलेन चैरिटेबल ट्रस्ट के बैनर तले धर्मशाला शहर के डिपो बाजार में दस ऐसे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था, जो प्रवासी थे और कूड़ा इकट्ठा कर अपना पेट पालते थे। इन बच्चों के लिए शिक्षा की बात करना सपने जैसा था। उस समय जाम्यांग के पास सिर्फ दो लोगों की टीम थी। खैर, समय के साथ जाम्यांग की मुहिम रंग लाई और बाद में टोंगलेन हाई स्कूल सराह गांव में चलने लगा।
अब इस स्कूल में करीब तीन सौ प्रवासी बच्चे शिक्षा पा रहे हैं। कुल 50 लोगों की टीम इन बच्चों को तराश रही है। स्कूल का अपना हॉस्टल है, जहां 150 बच्चे हैं। बौद्ध भिक्षु जाम्यांग के साथ स्कूल की वाइस पिं्रसिपल रीता कुमारी व सीनियर मैनेजर नविता प्रधान ने बताया कि स्कूल के हॉस्टल में ही एक सौ अठारह छात्र हैं, जबकि रोजाना बाहर से अप डाउन करने वाले 150 के करीब छात्र हैं। उन्होंने बताया कि आज इस स्कूल से 100 से ज्यादा ऐसे छात्र पास आउट होकर निकले हैं, जो डॉक्टर, इंजीनियर जैसे प्रतिष्ठित पेशे से या तो जुड़ गए हैं या जुडऩे वाले हैं। यह सब जाम्यांग की कड़ी तपस्या से संभव हो पाया है।
20 साल पहले 10 छात्रों से शुरू हुई पाठशाला अब 300 छात्रों को दे रही शिक्षा, तिब्बत से आए जाम्यांग ने साकार कर दिखाए भिक्षु होने के मायने
महामहिम दलाईलामा का है आशीर्वाद
जाम्यांग ने बताया कि इस स्कूल को ‘द दलाईलामा ट्रस्टÓ का पूरा सहयोग रहता है। इसके अलावा टोंगलेन यूके भी टोंगलेन इंडिया को सपोर्ट करता है। वहीं स्थानीय लोग भी स्कूल को मदद देते हैं। स्कूल में महाराष्ट्र, राजस्थान आदि प्रदेशों से आई लेबर के बच्चों के अलावा स्थानीय छात्र भी हैं। हर साल 30 के करीब नए पंजीकरण होते हैं।
अपना हेल्थ केयर सेंटर, वोकेशनल ट्रेनिंग भी
टोंगलेन का अपना स्कूल- होस्टल होने के साथ हेल्थ केयर सेंटर भी है। इसमें लैब, फार्मासिस्ट-नर्स भी है। समय पर बाहर से डॉक्टर की सेवा भी ली जाती है। चाइल्ड केयर सेंटर अलग से है। इसी तरह टोंगलेन वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर भी है,जहां छह माह की ट्रेनिंग दी जाती है।
शिक्षा बोर्ड से एफिलिएटिड, लक्ष्य कुछ ऐसा
यह स्कूल शिक्षा बोर्ड से एफिलिएटिड है। जाम्यांग कहते हैं कि उनका लक्ष्य बच्चों में पढ़ाई सकारात्मक सोच विकसित करना है। इसमें सैल्फ डिस्पिलिन, लोजिक के अलावा सोशल, इमोशनल, एथिकल लर्निंग को महत्व दिया जाता है। स्कूल का कैरिकुलम महामहिम दलाईलामा की दो किताबों से लिया गया है। इन किताबों लर्निंग और यूनिवर्सिल एथिक्स की सीख मिलती है।
अगर कोई बच्चा भूखा है, तो उसे सिर्फ खाना देने से कुछ नहीं होगा। उसमें चेंज तब आएगा जब उसे सही मायने में शिक्षा मिलेगी, यही मेरे जीवन का लक्ष्य है। मुझे भारत की समृद्ध परंपरा से काफी कुछ मिला है, मैं इन बच्चों की मदद के जरिए समाज को अपना बेहतर योगदान देना चाहता हूं।
-थरचिन गैलसन उर्फ जाम्यांग, बौद्ध भिक्षु।