भाजपा में बाहर से एकजुटता अंदर से सिर्फ फांके-फांके
हिमाचल दस्तक। उदयबीर पठानिया
पुरानी फिल्मी ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए’ के गीत, ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में,प्यार की छांव में बिठाए रखना…’ । यह वो गीत था, जो सोमवार को एक प्रत्याशी के साथ आई ब्रास बैंड पार्टी बजा रही थी। रविंद्र जैन जी द्वारा लिखित और हेमलता जी द्वारा गाए उपरोक्त गाने की पंक्तियां सियासी माहौल पर सटीक बैठ रहीं थीं। बीजेपी-कांग्रेस के प्रत्याशियों को इनके हाईकमान सपनों का गांव में तो ले आए हैं, मगर जनता के प्यार की छांव मिल पाएगी यह सवाल धर्मशाला में पीछे छूट गया। इसकी कई वजहें रहीं । सोमवार को धर्मशाला में भाजपा-कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने अपनी-अपनी जूनियर पौध को गमलों से निकाल कर चुनाव की जमीन पर रोप दिया। पर दोनों दलों के सीनियर नेताओं के हाथ पौधारोपण के वक्त कांपते ही नजर आए। इस पॉलिटिकल फि़ल्म के इस फर्स्ट-डे के फस्ट-शो पर ‘हिमाचल दस्तक’ की ग्राउंड रिपोर्ट…
भगवा टीम बाहर से तो संतरे की तरह नजर आई, मगर संतरे के भीतर की फांके अलग-अलग हैं, सियासी संतरे में यह अटूट सत्य भी मजबूत दिखा। पूर्व भाजपा विधायक और मौजूदा सांसद किशन कपूर ने एक दफा भी मंच से प्रत्याशी विशाल नैहरिया का नाम नहीं लिया। मगर एक तथ्य जरूर था कि भाजपा के बड़े नेताओं और सेकंड लाइन ऑफ लीडरशिप ने मैदान में किसी को यह कहने का मौका नहीं दिया कि बाहरी तौर पर सियासी भगवा संतरे में बासीपन है। पर हालात ने जरूर यह इशारा कर दिया कि हालत सही नहीं है। संतरे के अंदर आपस में चिपकी फांके कभी भी अलग हो सकती हैं। ओबीसी बिरादरी से राकेश चौधरी आज़ाद खड़े होकर भाजपा की रैली के सामने से कंधों पर सवार होकर निकल गए।
साफ था कि या तो भाजपा के उच्च पदासीन नेताओं ने बवाल थामने की कोशिश नहीं कि या फिर कोई बड़ा नेता ही खेल को खेल गया। ऐसे में सवाल भाजपा की उस डिजास्टर मैनेजमेंट टीम पर भी उठ गया है, जो सरकार ने यहां मंत्रियों-संतरियों के रूप में तैनात कर रखी है। ओबीसी बिरादरी के इस आजाद प्रत्याशी की वजह से भाजपा की सांसों में घुटन का एहसास भी सबको हो रहा है। हालांकि अभी नामांकन वापसी के लिए वक्त है तो यह आसार भी हैं कि शायद भाजपा को कोई ‘वक्त’ न पड़े। मगर राकेश की धमक ने धुकधुकी तो जरूर बढ़ा दी है। विशाल के लिए नेताओं संग कांगड़ा-चंबा के नेताओं की भीड़ जमा हुई थी। सत्ता पक्ष के लिए जो समां बंधता है,वह भी बखूबी बंधा। बस कुछ बंधता नजर नहीं आया तो वह था, आत्मीयता का रिश्ता। बस अंदरूनी टीस के रिसाव के भाव ही दिखे।
चरणवंदे जी चरणवंदे…
नामांकन भरने के वक्त विशाल नैहरिया का आमना-सामना अपने ही पार्टी भाई राकेश चौधरी से हो गया। विशाल ने बिना कोई पल गंवाए चौधरी को गले से लगाया तो उनके साथ आए बजुर्गों-माताओं के पांव छूने में भी देरी नहीं की। गौरतलब है कि विशाल की सबसे ज्यादा चर्चाएं यह हैं कि लड़का संस्कारी है।
गडमड कांग्रेस, गड़बड़ हालात और हालत
सात सालों से सुधीर शर्मा के सहारे चल रही कांग्रेस अचानक से सोमवार को बेसहारा ही नजर आई। हाई प्रोफाइल मैनेजमेंट के आदी रहे कांग्रेस के काडर में कमजोरी के लक्षण भी सरेआम नजर आए। नामांकन के मौके पर विजय इंद्र कर्ण को आशीर्वाद देने के लिए कांग्रेसी नेताओं की बारात जरूर पहुंची, लेकिन चूक की भी चर्चा हुई। यहां तक चूक हुई कि कांग्रेस हाईकमान ने जिन मनोज मेहता को ऑब्जर्वर तैनात किया था, उनको भी बुलावा नहीं भेजा गया। शहर के मेयर दविंद्र जग्गी को भी लास्ट मूमेंट पर सूचना दी गई। जनता के दरबार में लाड़-प्यार ढूंढने को निकलने के लिए तैयार कांग्रेसी फौज ने सुधीर शर्मा को सिर्फ बैनर पर ही जगह दी। अपने दिलों के दरवाजे ठीक वैसे ही बंद कर लिए, जिस तरह से चुनाव क्यों नहीं लड़ा के सवाल पर शर्मा ने अपना मुंह बंद रखा हुआ है।
पॉलिटिकल मैनेजमेंट में कांग्रेस का हाल भी भाजपा की ही तरह नजर आया। नगर निगम के कई कांग्रेसी पार्षद गायब रहे। यह वही निगम है जिसके दम पर मेयर तो कांग्रेस के हैं, मगर डिप्टी मेयर भाजपा के सिपाही हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस कितनी एकजुट है। मेयर जग्गी सभा में पहुंचे ही थे कि पूर्व कांग्रेस नेता चंद्रेश कुमारी ने प्रवेश किया। मंजर देख जग्गी ने बाहर का रास्ता देख लिया। पूर्व मेयर रजनी व्यास तो नदारद ही रहीं। एक दिन पहले तक पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष दिग्विजय पुरी कांग्रेस में दिख रहे थे, वह भी गायब हो गए। कई अन्य पुराने कांग्रेसी पंचायत प्रधान तो शायद घरों में ही पंचायत लगा कर बैठे रहे।
प्रधान उवाच का क्या हुआ?
कांग्रेस का एक गुट यह दुहाई दे रहा है कि सारी मैनेजमेंट तो वो कर रहे हैं, जिनको प्रधान कुलदीप राठौर ने कांग्रेस का प्राइमरी मेंबर तक नहीं माना था। हालांकि यह कुनबा छोटा जरूर है,पर इनका हल्ला बहुत तेजी से पसर रहा है।
रटे-रटाये डायलॉग…
सुधीर शर्मा की चुनाव न लडऩे की एक न से पूरी कांग्रेस की न हो गई है। कोई जवाब देते नहीं बन रहा है। करनी-भरनी की कहावत कांग्रेस पर सटीक बैठ रही है। न मीडिया के सवालों का जवाब देते बन रहा है न जनता के।