सालभर में 270 केस ही निपटा पा रहा महिला आयोग , 500 केस बकाया सीधी कार्रवाई की शक्ति भी नहीं
जया शर्मा : हिमाचल में महिला आयोग महिला उत्पीडऩ के मामलों को देखने के लिए बनाया गया है। आयोग में हर साल करीब 440 मामले महिला प्रताडऩा के आ रहे हैं। वर्ष 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि इनमें से सबसे ज्यादा 225 मामले ससुराल या पति द्वारा प्रताडऩा के हैं, जबकि करीब 150 मामले अन्य तरह के आयोग के पास आते हैं। हालांकि आयोग में पत्नियों द्वारा प्रताडऩा के 22 केस भी इस साल आए हैं।
महिला आयोग हर महीने शिमला में कोर्ट लगाता है। जिलों में भी मामलों की अधिकता को देखते हुए केस लगाए जाते हैं। इसके बावजूद आयोग सालभर में 270 के करीब केस ही निपटा पा रहा है। आयोग में अभी भी करीब 500 केस बकाया हैं। एक और दिक्कत ये है कि आयोग के पास सीधी कार्रवाई की शक्ति नहीं है। आयोग को पुलिस की मार्फत ही कार्रवाई की सिफारिश करनी होती है।
इसका कंप्लायंस भी लेने का अधिकार है। लेकिन, सीधे सजा का प्रावधान न होने के कारण महिला आयोग के कोर्ट की सुनवाई को भी संबंधित पक्ष गंभीरता से नहीं लेते। इसलिए ज्यादातर मामलों को आपसी सुलह से ही निपटाया जाता है। विभागीय मामले आयोग के समक्ष शिकायत के रूप में आते हैं। इस प्रकार के मामले में आयोग संबंधित विभाग से जांच-पड़ताल करवाकर शिकायत का निवारण करता है।
क्या कहना है महिला आयोग अध्यक्ष का?
महिला आयोग की अध्यक्ष डेजी ठाकुर का कहना है कि आयोग मामलों की जरूरत के हिसाब से कोर्ट लगाता है। केस सुलझाने की हमारी दर संतोषजनक है। आयोग का मकसद किसी गलतफहमी या गलती की वजह से टूट रहे परिवार को बचाना होता है, जिससे संबंधित महिला समाज में सुरक्षित भी हो। उन्होंने कहा कि आयोग के पास अपना काम चलाने का पर्याप्त शक्तियां हैं और इससे ज्यादा हस्तक्षेप चाहिए हो तो सरकार से अनुशंसा की जाती है। उन्होंने कहा कि महिला उत्पीडऩ के मामलों में भी हिमाचल की स्थिति बाकी कई राज्यों से बेहतर है।
सक्षम गुडिय़ा बोर्ड से नहीं जुड़ी हेल्पलाइन
महिलाओं और छात्राओं को सुरक्षा देने के लिए खुली गुडिय़ा हेल्पलाइन लगभग दो साल से बोर्ड के साथ नहीं जुड़ी है। अगर यह डायरेक्ट गुडिय़ा हेल्पलाइन बोर्ड के साथ जुड़ जाएगी तो ज्यादा फायदा होगा। अभी यह शिकायत पुलिस को जाती है। पुलिस यहां से जो नजदीक का थाना होता है, वहीं से पीडि़ता का मामला दर्ज करवाती है। गुडिय़ा हैल्पलाइन की वजह से पीडि़ताएं अब सामने आ रही हैं। वह गुप्त रूप से अपनी शिकायत कर सकती हैं। सक्षम गुडिय़ा बोर्ड की उपाध्यक्ष रूपा शर्मा कहती हैं कि कई बार पीडि़ता डायरेक्ट उनसे संपर्क में आती है तो न्याय त्वरित हो जाता है।