अरविंद शर्मा। शिमला:
मोदी सरकार के दूसरे रेल बजट से हिमाचल प्रदेश के लोगों को काफी उम्मीदें हैं। खासकर कश्मीर के मुकाबले हिमाचल के पहाड़ी इलाकों तक रेल पहुंचाने की पिछड़ती योजनाओं को लेकर। अंग्रेजों के बनाए रेल ट्रैक को आजादी के बाद एक इंच भी आगे नहीं बढ़ाया जा सका है।
सर्दियों की बर्फ हो या गर्मियों से दूर ठिकाने की तलाश, देश और दुनिया के कोने-कोने से सैलानियों की चहेती ये कालका-शिमला रेल 112 साल की हो चुकी है। कालका-शिमला रेलवे को संयुक्त राष्ट्र से विश्व धरोहर का तमगा भी हासिल हो चुका है, लेकिन इस चलती का नाम गाड़ी का सफर आजादी के बाद थम गया, शिमला के आगे का रास्ता पहाड़ों में गुम हो गया। हिमाचल प्रदेश के लिए पंाच दशक से हर बार रेल बजट में वही घोषण होली है कि चुहे के मुंह में जीरा वाला हाल है और उसके अतिरिक्त केंद्र सरकार हिमाचल प्रदेश को रेलवे के काम के लिए राज्य में रेल लाइन के लिए प्रदेश सरकार के भी भागीदार बना देती है।
वहीं प्रदेश सरकार की माली हालत यह है कि कई विकास योजनाओं के अतिरिक्त कर्मचारियों के वेतन तक के लिए कई तरह के ऋण लेकर काम चलना पड़ रहा है। इससे प्रदेश में रेल लाइन के लिए प्रदेशी सरकार कहां अपनी भागीदारी सुनिशित कर सकती है। ऐसे में प्रदेश में कोई भी नई रेल लाइन प्रदेश की जनता के लिए अब मुंगेरी लाल के हसीन सपनों जैसे हो गई। पठानकोट के मैदानी इलाकों से कांगड़ा की वादियों को जोडऩे वाली ट्रेन की सेहत भी कुछ अच्छी नहीं है।
इस ट्रैक को आगे मनाली और फिर लेह तक ले जाने की योजना रेल मंत्रालय की फाइलों में धूल खा रही है। पिछले रेल बजटों में हिमाचल के पहाड़ी इलाकों के लिए नए रेल रूटों का ऐलान किया गया। बिलासपुर-मनाली-लेह, अम्ब से कांगड़ा, धर्मशाला से पालमपुर और बद्दी से बिलासपुर, लेकिन इन परियोजनाओं पर या तो काम शुरू ही नहीं हुआ या फिर बेहद सुस्त है।
इन रेलवे परियोजनाओं को मिल सकती है मंजूरी
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश किए जाने वाले आम बजट में हिमाचल की रेल परियोजनओं के लिए भी कई प्रावधान हो सकते हैं। विशेषकर केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के गृह क्षेत्र की ऊना-हमीरपुर रेल लाइन के लिए बजट प्रावधान हो सकता है, जिससे यह परियोजना गति पकड़ सके। यह रेल लाइन लगभग 51 किलोमीटर लंबी बनाई जानी है। ऊना से हमीरपुर के लिए प्रस्तावित इस रेल परियोजना को पिछले बजट में डाला गया था, मगर इसके लिए महज टोकन बजट ही डाला गया।
यह प्रोजेक्ट अभी बहुत ही प्रारंभिक चरण में है। इसे पिछली बार भी केंद्रीय बजट में डालने के पीछे भी अनुराग ठाकुर का योगदान माना जा रहा है। अब चूंकि अनुराग ठाकुर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री हैं तो वह इस योजना के लिए प्रावधान करवा सकते हैं। अब प्रदेश की जनजा को एक बार फिर रेलवे बजट में कोई आस बध रही है कि केंद्रीय राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर कुछ जरूर करेंगे।
इन परियोजनाओं को भी रफ्तार मिलने की उम्मीद
बजट में संभावित प्रावधानों से हिमाचल के कई अन्य रेल प्रोजेक्टों को भी गति मिल सकती है। हिमाचल में चंडीगढ़ से बद्दी रेल लाइन भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं होने के कारण अधर में अटकी है। यह हिमाचल के अलावा हरियाणा में भी बनेगी। प्रस्तावित बिलासपुर-लेह रेल लाइन की बेस लाइन भानुपल्ली-बिलासपुर का भी केवल 20 किलोमीटर का ही भू-अधिग्रहण हो पाया है। 63 किमी के इस ट्रैक पर भी भू-अधिग्रहण के लिए हिमाचल केंद्र से बजट की मांग करता रहा है।
75:25 के राज्य और केंद्र सरकार के लागत अनुपात से बनने वाली इस रेल लाइन का भू-अधिग्रहण का ज्यादातर खर्च हिमाचल को ही उठाना है। वहीं नंगल-तलवाड़ा रेल लाइन का 100 प्रतिशत खर्च रेलवे उठा रहा है। इसका निर्माण अंतिम चरण में है। हांलाकि यह रेल लाइन मुबारिकपुर तक पहुंच चकी है और तलवाड़ा तक रेल लाइन का काम भी चला हुआ है। केंद्र सरकार ने पहले भी घोषित भानुबल्ली-बरमाणा रेल लाइन के लिए 25: 75 के अनुपात में काम करने की घोषण की थी , लेकिन हिमाचल प्रदेश के आर्थिक स्थिति ऐसी नही है कि रेल लाइन के लिए अपने वार्षिक वजट से रेल लाइन के जिए बजट निकाल सके।