खेमराज शर्मा। शिमला
हिमाचल सरकार हिमाचली टोपी समेत धाम की जियो टैगिंग करने जा रही है। हिमकोस्ट को फाइल भेजी गई है, जिसमें आगामी प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही फाइल पूरी होने पर टैगिंग हो जाएगी। इसके अलावा हिमाचल के अन्य वाद्य यंत्रों और अन्य ऐसे उत्पादों की भी टैगिंग की जाएगी, जो कि केवल हिमाचल में ही बनते हो। इनका वास्ता सीधे तौर पर हिमाचल की संस्कृति से हो। इससे पहले हिमाचल प्रदेश स्टेट सूचना केंद्र ने चंबा चप्पल, लाहौली जुराबें एंव दस्ताने को भौगोलिक संकेतक अधिनियम 1999 के तहत पंजीकरण करने में सफलता प्राप्त की थी।
गौरतलब है कि अगर हिमाचली टोपी की जियो टैगिंग हो जाती है तो टोपी का अनधिकृत उत्पादन को रोकने में मदद मिलेगी। इससे जुड़े उत्पादकों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास भी होंगे। इसी तरह हिमाचल के पारंपरिक वाद्य यंत्रों की भी जियो टैगिंग होने से इनके गैर कानूनी व्यापार में रोक लगेगी, जो स्थानीय लोग इन पारंपरिक वाद्य यंत्रों को बनाते है उनके रोजगार के भी साधन बढ़ेंगे। इससे यह भी होगा कि निर्देशित क्षेत्र के बाहर इन उत्पादों का उत्पादन नहीं हो सकेगा। इसी तरह हिमाचली धाम की भी टैगिंग की जाएगी।
अभी तक हिमाचल में इन उत्पादों की हुई जियो टैगिंग
हिमाचल में अब 9 उत्पाद जियो टैगिंग से जुड़ गए हैं। इसमें सबसे पहले कुल्लू शॉल (2005), कांगड़ा चाय (2005), चंबा रूमाल (2005), किन्नौर शाल (2010), कांगड़ा पेंटिंग्स (2013), हिमाचली कालाजीरा (2019), हिमाचल चुली तेल (2019) और अब चंबा चप्पल (2021) व लाहौली जुराबें व दस्ताने (2021) आठवें और नौवें पारंपरिक उत्पाद होंगे।