उदयबीर पठानिया : फतेहपुर में फतह
कांग्रेसी जमात की धार धर्मशाला और पच्छाद के उपचुनावों में कुंद ही साबित हुई थी। पच्छाद में कमांडर पीसीसी चीफ कुलदीप राठौर थे तो धर्मशाला में सीएलपी मुकेश अग्निहोत्री कांग्रेसी बारात के पथ-प्रदर्शक थे। नतीजा यह निकला था कि पच्छाद में गंगूराम मुसाफिर ने सफर तो किया, मगर मंजिल नहीं मिली। धर्मशाला में तो यह हाल हुआ था कि कांग्रेस अति पिछड़ी साबित हुई और जमानत राशि भी नहीं निकाल पाई थी। ऐसे में अगर हकीकत कही जाए तो फतेहपुर में कांग्रेस के पास सिवाए ‘करुणामूलकÓ वोटों और स्व. सुजान सिंह पठानिया के पुराने रसूख के अलावा अब कुछ नहीं है।
पठानिया जी के इसी रसूख की एक वजह यह भी थी कि कोई और चेहरा यहां उभर ही नहीं पाया था। हां, यह अलग बात है कि पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया के साथ उनके जवाई रवि ठाकुर का रसूख अच्छा-खासा है। पर सवाल यह है कि क्या कांग्रेस परिवारवाद के साथ जा पाएगी? अगर ऐसा हुआ तो कोई बड़ी हैरानगी वाली बात नहीं होगी। इसके कई उदाहरणों से कई कांग्रेसी कुनबे प्रदेशभर में नजर आते हैं।
अगर पठानिया फैमिली से बाहर की बात करें तो फिलवक्त कांग्रेस के आगे निशावर सिंह, गिरधर गोपाल, चेतन चंबियाल, सुरजकांत, मलकीत सिंह धालीवाल जैसे चेहरे खड़े हैं। निशावर सिंह तो नब्बे के दशक से टिकट के दावेदार चले आ रहे हैं। खैर, यह तो फतेहपुर में कांग्रेस का जमीनी मसला है। मगर कांग्रेसियों के हवाई महल भी यहां कम नहीं हैं। सबसे पहले कांग्रेस टिकट आवंटन में ही उलझ जाएगी। परिवारवाद के सामने हमेशा की तरह कार्यकर्ताओं का हुजूम खड़ा होगा। कांग्रेस की स्थिति हर हाल में आगे कुआं पीछे खाई वाली बनेगी। परिवार में टिकट दिया तो कार्यकर्ता मुखर होंगे। बाहर टिकट दिया तो पठानिया की लिगेसी से हाथ धोने की मुश्किल खड़ी हो जाएगी।
सवाल यह भी अहम है कि कांग्रेस चुनाव करवाने और जीत हासिल करने की कमान किसको थमाएगी? राजपूत बहुल विधानसभा क्षेत्र फतेहपुर में कांगड़ा जिला में ऐसा कौन राजपूत कांग्रेसी नेता होगा, जिस पर यह जिम्मा सौंपा जाएगा? कांग्रेस के भीतर अभी जो कांगड़ा का नेता बनने की जंग चली हुई है, उसमें सिर्फ दो ब्राह्मण नेता जीएस बाली और सुधीर शर्मा हैं। बकाया तमाम राजपूत नेता जिनमें, चंद्रेश कुमारी, विप्लव ठाकुर हाशिये पर हैं तो मेजर विजय सिंह मनकोटिया हाशिये से ही बाहर हैं। एकमात्र सुजान सिंह पठानिया ही ऐसा चेहरा थे, वह भी अब नहीं रहे।
जबकि भाजपा के पास कांगड़ा से ही राकेश पठानिया और विपन परमार जैसी लीडरशिप मौजूद है। कांग्रेस हर मायने में अंधेरे में खड़ी नजर आ रही है। कोई ऐसा फिलवक्त नजर में नहीं है जो इस अंधेरे में कांग्रेस के ‘हाथ’ को पकड़ कर जीत का हाथ दिखा सके। सुजान सिंह के जाने से कम से कम फतेहपुर में कांग्रेस बेजान नजर आ रही है। जिन सुजान ने साल 2009 में भाजपा को सत्तारूढ़ होने के बावजूद बेजान साबित किया था, आज उन्हीं सुजान के घर में कांग्रेस के बेजान होने का खतरा बनता दिख रहा है…
क्या कोई ब्राह्मण नेता बनेगा प्रभारी?
साल 2009 के उपचुनाव में फतेहपुर के प्रभारी का जिम्मा सुधीर शर्मा को दिया गया था। इस चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को झटका जोर से लगा था। तो क्या इस बार फिर सुधीर को यह कमान मिलेगी? हैरानी की बात यह है कि अभी भी फोकस जीत पर न होकर इस बात पर है कि सुधीर को रोका जाए। इल्जाम उठ गया है कि शर्मा ने तो धर्मशाला के उपचुनाव से कदम पीछे खींच लिए थे, फतेहपुर में फतह की उम्मीद कैसे रखनी?
भवानी का है करोड़ों का पैकेज
सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में बड़े पद पर तैनात हैं। उनका सालाना सैलरी का करोड़ों रुपये का पैकेज भी है। भवानी अन्य नेताओं के बेटों से निहायत ही अलग स्वभाव के हैं। पर यह भी सच है कि उनका रुतबा उनके पिता के स्वभाव की ही तरह सबसे अलग है। देखना यह होगा कि क्या भवानी सियासत की तरफ कदम उठाएंगे?