उदयबीर पठानिया : नगर निगम के गम
तो क्या पार्टी सिंबल पर नगर निगमों के चुनाव होंगे? बीजेपी खुल कर कांग्रेस के आमने-सामने हो पाएगी? यह सवाल इसलिए अहम है कि बीते पंचायती राज चुनावों में भाजपा ने जिस तरह से विभिन्न जिला परिषद या बीडीसी पर अपने नाम के झंडे लहराए हैं उन झंडों में फ्लैग रॉड्स में विशुद्ध भाजपाई लोहा नहीं था। या तो यह निर्दलीय थे या फिर भाजपा के ऐसे चेहरे थे, जिनको पार्टी ने समर्थन नहीं दिया था।
यानी भाजपा को या तो सत्ता बल ने सहारा दिया या फिर भाजपा से खफा होकर बागी बने उम्मीदवारों ने। भाजपा की यह जीत कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा की वजह से ही हो पाई थी तो क्या पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने की सोच रही भाजपा कोई आत्मघाती कदम उठाने की राह पर है या किसी अति आत्मविश्वाश की चपेट में? यह बड़ा सवाल बन गया है।
अगर मोटे तौर पर ही नजर घुमाएं तो सिवाए कांगड़ा-चंबा-हमीरपुर जिलों को छोड़कर हर जिले में भाजपा के पास कोई स्पष्ट बहुमत नहीं था। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के गृह जिला बिलासपुर में मात्र 21 साल की युवती ने कमल के तालाब में ऐसी सुनामी लाई कि वह चैयरपर्सन के पद पर आसीन हुईं। मुख्यमंत्री के गृह जिला मंडी में तो भाजपा के दरकिनार किए गए पाल वर्मा जिप अध्यक्ष बन गए। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप के घर सिरमौर में तो किस्मत से लॉटरी लग गई थी।
अलबत्ता यहां भी भाजपा के हालात और हालत से सभी वाकिफ ही हैं। ऐसे में अब यह सवाल लाजमी हो जाता है कि आखिर भाजपा किस बिनह पर पार्टी सिंबल पर चुनाव लडऩे के लिए दम भर रही है? ऐसा नहीं है कि जिन चार नगर निगमों के चुनाव होने हैं, उन्हें किसी भी तरह से हल्का या कमतर आंका जा सके। कांगड़ा-चंबा लोकसभा क्षेत्र में धर्मशाला और पालमपुर दो निगम हैं। शिमला में सोलन तो मंडी लोकसभा क्षेत्र में मंडी नगर निगमों के चुनाव होंगे।
मंडी सीएम का घर है। सोलन नगर निगम सरकारी मुख्यालय के सबसे नजदीक है। यहां के नतीजे हर हाल में सरकार के वजन और वजूद पर असर डालने वाले होंगे। जीते तो बल्ले-बल्ले होगी और नतीजे उल्ट आए तो थल्ले-थल्ले भी जोरदार होगी। वजह होगा पार्टी सिंबल वाला कमल का फूल। कांग्रेस के ‘हाथ’ फिलवक्त खाली हैं। गंवाने को कुछ होगा नहीं और हथियाने को बहुत कुछ। ऐसे में जो भी मैसेज जाएगा जिस किसी के भी हक में जाएगा, वह कोई न कोई गुल तो सियासी गुलशन में हर सूरत खिलाएगा।
देखना यह होगा कि अब अधिकारिक तौर पर प्रदेश सरकार क्या फैसला लेती है। सियासी माहिर तो यह मान रहे हैं कि पार्टी सिंबल के आधार पर चुनाव हुए तो इसके नतीजे दूरगामी होंगे। प्रदेश के दूसरे नंबर पर बने धर्मशाला नगर निगम पर तब सत्तारूढ़ कांग्रेस काबिज हुई थी। बाद में किशन कपूर ने साल 2017 के विधानसभा चुनावों में नगर निगम लाने वाले कांग्रेस के सुधीर शर्मा को हराया था। इसके बाद जनता ने साल 2019 के धर्मशाला उपचुनाव में कांग्रेस की जमानत जब्त करवा दी थी। इस बार उल्ट है।
भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस बाहर बैठी हुई है। भविष्य में खतरा भाजपा के लिए होगा न कि कांग्रेस के लिए। जबकि कुल्लू और शिमला में जो कांग्रेस ने किया वह भाजपा के लिए मुगालते से निकलने के पुख्ता वजहें हैं। यहां भी तो भाजपा सरकार के तगड़े कद्दावर मंत्री हैं…
सिंबल या पॉलिटिकल फेस पर पिम्पल…
सियासी माहिर कहते हैं कि भाजपा को पार्टी सिंबल पर चुनाव लडऩे का कदम तभी उठाना चाहिए जब जीत का भरोसा हो। अलबत्ता यह आत्मघाती फैसला भी साबित हो सकता है। भाजपा को मोदी मैजिक का अध्ययन भी मौजूदा हालात के मुताबिक करना होगा। अति उत्साह में कोई भी कदम उठाने से परहेज करना जरूरी होगा। कहीं ऐसा न हो कि ओवर कांफिडेंस में पार्टी सिंबल को लाने से सियासी चेहरे पर पिम्पल उभर आएं।
मद और दम, लफ्ज एक जैसे पर…
पैनी सियासी नजर रखने वाले एक्सपर्ट कहते हैं कि दो अक्षर ‘द’ और ‘म’ से सियासत में दम भी बनता है और मद भी। लफ्ज वहीं हैं मगर इनके आगे-पीछे होने से इनका सार भी बदलता है और सियासत में आसार भी बदल जाते हैं। सियासी दम कुछ और होता है सियासी मद कुछ और। ऐसे में अति उत्साह और बयानबाजी भी उल्टी पड़ सकती है।