संयुक्त राष्ट्र : भारत ने आतंकियों और आतंकी समूहों को अन्य देशों द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष वित्त पोषण की कड़ी निंदा की है और कहा है कि इससे ही वह आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे पाते हैं। महासभा की छठी समिति की बैठक में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई मिशन में प्रथम सचिवाकानूनी सलाहकार एड़ला उमाशंकर ने बुधवार को यह बात कही। बैठक का विषय था अंतराष्ट्रीय आतंकवाद को खत्म करने के उपाय। उमाशंकर ने कहा कि आतंक के वित्तपोषण को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र तथा वित्तीय कार्वाई कार्यबल (एफटीएफए) के बीच सहयोग बढ़ाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, राज्यों की ओर से आतंक को पैदा करने वाले संसाधनों के प्रवाह को रोकने की जरूरत है और इसके लिए लिए उपक्षेत्रीय स्तर तथा क्षेत्रीय स्तर पर सामूहिक अंत: देशीय प्रयास करने होंगे। आतंक के वित्त पोषण से लडऩे और उसे रोकने के लिए वैश्विक मानक तय करने में एफएटीएफ की महत्वपूर्ण भूमिका है और संयुक्त राष्ट्र को ऐसी संस्थाओं के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश या उनकी मशीनरी की ओर से आतंकी समूहों या आतंकियों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से वित्तीय सहायता पहुंचाने की भारत कड़ी निंदा करता है। इसी वजह से आतंकी समूह आतंकी गतिविधियों से जुड़े आपराधिक मामलों में अपना बचाव कर पाते हैं।
भारत की टिप्पणी उस पृष्ठभूमि में आई है जिसमें पाकिस्तान ने संरा सुरक्षा परिषद की आतंक निरोधी समिति से अनुरोध किया था कि मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को बुनियादी खर्चे के लिए वह उसके बैंक खाते से पैसा निकालने की इजाजत दे।
सईद को संयुक्त राष्ट्र ने आतंकी घोषित किया हुआ है। उसे आतंक के वित्त पोषण के एक मामले में इस वर्ष 17 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था। संयुक्त राष्ट्र के नियमों के मुताबिक किसी भी देश को आतंकी घोषित किए गए लोगों के सभी आर्थिक स्रोतों, अन्य वित्तीय संपत्तियों तथा कोषों पर रोक लगाना होती है।
उमाशंकर ने कहा, संरा महासभा में बीते एक दशक से वैश्विक आतंक निरोधी रणनीति(जीसीटीएस) को लेकर चर्चा हो रही है लेकिन जमीन पर इसका कुछ विशेष प्रभाव नहीं रहा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से बनाई गई प्रतिबंध समिति धुंधली कार्य प्रणाली और फैसले लेने पर राजनीति हावी होने के कारण चयनित रूप से निशाना साधने का औजार बनकर रह गई है। उन्होंने भारत के इस दृढ़ विश्वास को दोहराया कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (सीसीआईटी) आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मजबूत कानूनी आधार देगा और आतंक निरोधी प्रयासों में बहुपक्षीय तथा सामूहिक पैमाने का होना सभी सदस्य देशों के हित में होगा।
उमाशंकर ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को आतंकवाद को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति को अपनाना और लागू करना होगा।
उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की जड़ें फैली हुई हैं, इसे और इसके असंख्य वैश्विक संपर्क को हाल के वर्षों में सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर खतरा माना गया है। उन्होंने कहा कि आतंकी समूहों के बीच बढ़ते संपर्क, सीमा पार के अभियान मसलन आतंक के वित्त पोषण के नेटवर्क, आधुनिक तकनीकों का दुरुपयोग करते हुए घृणा फैलाने वाली विचारधाराओं का प्रचार तथा हथियारों के लिए पैसा मुहैया करवाने जैसे खतरों के चलते आतंक के प्रभाव से कोई भी देश सुरक्षित नहीं है।
उन्होंने कहा कि इस सचाई को सबूत की जरूरत नहीं है कि आतंकवाद का मुख्य निशाना लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष तथा बहु सांस्कृतिक समाज हैं। ए आतंकवाद के हमले के लिहाज से बहुत संवेदनशील हैं। उमाशंकर ने कहा, आतंकवादी हमारे देशों में नागरिक स्वतंत्रता, धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता का फायदा उठाते हैं। उन्होंने सूचनाओं के आदान प्रदान, प्रभावी सीमा नियंत्रण के लिए क्षमता निर्माण, आधुनिक तकनीक के दुरुपयोग को रोकना, पैसे के अवैध लेनदेन पर नजर रखना और न्यायिक प्रक्रिया तथा जांच में सहयोग करते हुए आतंक का मुकाबला करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया।