ऊना में एक निजी कंपनी के निदेशकों के खिलाफ दर्ज किया केस, इससे पहले विजिलेंस ब्रेकल कॉर्पाेरेशन के खिलाफ शिमला में दर्ज कर चुकी है केस
हिमाचल दस्तक ब्यूरो। शिमला : प्रदेश की जयराम सरकार अब अटैकिंग मोड पर आ गई है और भाजपा ने विपक्ष में रह कर राज्यपाल को कांग्रेस सरकार के मंत्रियों, बोर्ड व निगमों के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के खिलाफ चार्जशीट सौंपी थी। अब जयराम सरकार ने उस चार्जशीट की जांच शुरू कर दी है। भाजपा चार्जशीट में लगे आरोपों की जांच के दौरान अब पूर्व सरकार की पोल खुलने लगी है।
भाजपा चार्जशीट से जुड़े तथ्य प्रारंभिक छानबीन में सही पाए जाने पर विजिलेंस ने एक निजी कंपनी के निदेशकों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। यह एफआईआर विजिलेंस के ऊना थाने में दर्ज हुई है। इससे पहले विजिलेंस ब्रेकल कॉर्पोरेशन के खिलाफ शिमला थाने में केस दर्ज कर चुकी है। यह मामला भी भाजपा आरोप पत्र का हिस्सा था।
विजिलेंस के ऊना थाने में दर्ज केस के तहत सामने आया है कि एक प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में केसीसी बैंक द्वारा 48.4 करोड़ रुपये का ऋण स्वीकृत किया गया था। यह कर्ज ऊना में एक कंपनी के मौजूदा स्टील प्लांट को खरीदने के लिए स्वीकृत हुआ था। स्वीकृत ऋ ण में संयंत्र के संचालन के उद्देश्य से कार्यशील पूंजी के रूप में 15 करोड़ रुपये की नकद क्रेडिट सीमा (सीसीएल) शामिल थी।
इसी बीच कंपनी ने सीसीएल को 15 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 25 करोड़ करने की मांग की, जिसे बैंक ने जनवरी 2015 में 5.05 करोड़ रुपये की लागत के दो लैट्स को गारंटी के रूप में रखते हुए मंजूर किया। इसके बाद कंपनी ने फिर से सीसीएल को 25 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 35 करोड़ करने की मांग की। तर्क दिया गया कि उसने 14 करोड़ रुपये प्लांट और मशीनरी को बढ़ाने में निवेश किया है।
ऐसे में बैंक ने नवंबर, 2015 में बिलों के आधार पर ऋण को मंजूरी दे दी, लेकिन बाद में पाया गया कि कंपनी ने जो बिल प्रस्तुत किए हैं, वे जाली हैं। कंपनी से वसूली की कार्रवाई भी जारी है। ऐसे में विजिलेंस ने कंपनी के निदेशकों के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज किया है।
ब्रेकल से जुड़े मामले में जांच जारी
ब्रेकल कॉर्पोरेशन से जुड़े मामले में विजिलेंस जारी है। इसके तहत अधिकतर रिकॉर्ड कब्जे में लिया जा चुका है। आरोप यह भी है कि करोड़ों की परियोजना हासिल करने के लिए बे्रकल कॉर्पोरेशन ने फर्जी दस्तावेज दिए। ब्रेकल ने दावा किया था कि एक बैंक की उनके साथ 45 फीसदी की हिस्सेदारी है, लेकिन प्रारंभिक जांच में बैंक ने इस तरह की भागीदारी से इनकार कर चुका है। इसीतरह के अन्य कंपनी के मामले में भी कुछ ऐसा ही उभर कर सामने आया है।