कांग्रेसी बल्ले-बल्ले, लड़े कल्ले-कल्ले, हो गए थल्ले-थल्ले , महंगाई के खिलाफ निकले थे, सस्ती हरकत से गंवाई सियासी बरकत , राठौर को भी नहीं मिला ठौर, सबने दिखाई अपनी टौर
रैली बन गई जनाजा : उदयबीर पठानिया : प्याज गले मे लटका कर कांग्रेसी निकले तो मोदी सरकार को आइना दिखाने के लिए, पर अपनी शक्ल ही खराब कर बैठे। ताकत दिखानी थी, केंद्र सरकार को पर उल्टा खुद अपनी कमजोरियां ही जगजाहिर कर बैठे। धर्मशाला में महंगाई के खिलाफ निकली रैली में भीड़ भी खूब थी,शहर जाम भी हुआ,पर कांग्रेस आम ही बन कर रह गई।
दरअसल, इस सब की शुरुआत तभी हो गई थी जब तय स्थल पर विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के कार्यकर्ता जमा हुए। हर विधानसभा क्षेत्र के नेता ने अपने-अपने अलग झुंड बना कर जलवा दिखाना शुरू किया। बाद में जब रैली निकली तो पार्टी का जनाजा भी निकल गया। वजह थी, सुधीर शर्मा के लोगों से धर्मशाला के कांग्रेसियों का आमना-सामना होना। सिर्फ मारपीट ही नहीं हुई,बकाया सब कुछ हो गया। बीते उपचुनावों में गायब हुए सुधीर शर्मा सामने क्या दिखे,कांग्रेसियों के चेहरे देखने लायक हो गए। सीधा नारा उछला कि पहले लड़े थे गोरों से,अब लड़ेंगे चोरों से। अगला नारा उछला कि कांग्रेस के गद्दारों को। इन नारों के उछलने की देर थी कि सुधीर समर्थकों ने इक्की-दुक्की का नारा जड़ दिया। बस फिर क्या था, इक्की-दुक्की के नारे से सब तिया-पांचा कर दिया। जो सरकारी दीवार कांग्रेसी नेताओं का साँझा मंच बनी हुई थी, उस पर हंगामा शुरू हो गया।
सुधीर जिंदाबाद के गूंज रहे नारों ने ऐसा पॉलिटकल केमिकल लोचा किया कि जीएस बाली की कट्टर समर्थक और कांगड़ा जिला की अध्यक्ष सुमन वर्मा ने तगड़ी लताड़ लगाते हुए कहा कि ख़बरदार जो किसी का नाम लेकर नारा लगाया। उनके समर्थन में प्रधान कुलदीप राठौर उतरे तो सुधीर समर्थक और उग्र हो गए। न पूर्व प्रत्याशी विजय इंद्र कर्ण की फौज काबू में आई न सुधीर की सेना। हालात यह हो गए कि कांग्रेस की पहले से ही पतली हालत पानी बन गई। हकीकत यह थी कि रविवार को सुधीर उपचुनाव के बाद पहली दफा सामने आए थे। दल-बल भी खूब था। शो-मैन ने शो किया तो सुधीर से तंग कांग्रेसियों का खून भी खौल गया।
इस आग में बाली गुट के सिपाहियों ने भी खूब घी उडेला। नतीजा यह हुआ कि जो बीजेपी के खिलाफ प्रदर्शन की रैली थी,वह डीसी दफ्तर तक पहुंचते-पहुंचते हुए कांग्रेस के जनाजे में तब्दील हो गई। जो दहाड़ केंद्र सरकार के खिलाफ थी,वह सियासी सोग की चित्कार बन गई। सुधीर के चुंगल से बमुश्किल आजाद महसूस कर रही कांग्रेस को फिर से खुद के लिए खतरा महसूस हुआ। जबकि सुधीर की सेना ने यह साबित करने में कोई कोर-कसर बाकि नहीं रखी कि अब भी हम हैं तो आगे भी सिर्फ और सिर्फ हम ही हैं। खैर,जंग का आगाज हुआ, जो सुधीर तन-मन से खुद को कांग्रेसी कहते आ रहे हैं, उन्होंने लंबी बीमारी के बाद अपने तन को कांग्रेसियों के सामने खड़ा कर दिया। मन की तो सुधीर ही जाने। पर इतना जरूर था कि पुरानी कांग्रेस के मन जरूर हद से ज्यादा दुखी थे।
धर्मशाला बनेगा दूसरा शाहपुर
इस रैली रूपी जनाजे में शामिल कांग्रेसियों का मूड खूब उखड़ा हुआ था। इनका कहना था कि अब तो यह तय मानिए कि धर्मशाला दूसरा शाहपुर विधानसभा क्षेत्र बन रहा है। शाहपुर में कांग्रेसी लड़ाई की वजह से भाजपा जीतती है, अब यहां भी ऐसी ही जमीन तैयार हो रही है।
यरा बाकी छोड़ो यह बताओ
रैली में उठे बवाल को लेकर सामान्य कांग्रेसियों का कहना था कि बाकि छोड़ो,यह बताओ कि अगर पुरानी कांग्रेस में इतना ही दम था तो कांग्रेस की जमानत क्यों जब्त हुई और अगर सुधीर ने हरवाया था तो क्या सुधीर में इतना दम माइनस पुरानी कांग्रेस था कि उन्होंने उठने का मौका ही नहीं दिया।
यह प्रधान भी दम नहीं रखते
कांग्रेसी इस बात से भी खिन्न थे कि प्रदेशाध्यक्ष रैली में आने से पहले सुधीर के स्वागत में क्यों पहुंचे, जबकि उपचुनावों में यही राठौर साहब और शर्मा एक-दूसरे के आमने-सामने थे। सवाल सीधा था कि इनके प्रेम में कोई आंच नहीं आई और हम कार्यकर्ताओं को क्या जलने-भुनने के लिए रखा है।