चेतन लता। जंजैहली
सराज घाटी का अंतिम मेला वीरवार को संपन्न हुआ। हालांकि पिछले दो वर्षों से कोरोना की महामारी से कोई मेला नहीं हुआ, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे मेले जो कि देव परंपरा से जुड़े हैं, उसे टूटने नहीं दिया।
सराज घाटी इस वर्ष के अंतिम मेले में अधिकतर लोहे का सामान, गर्म कपड़े और मिठाइयां बिकती हैं। बता दे इस मेले को दाडु मेले के नाम से जाना जाता है। दाडु जो अनार चटनी बनाने के काम आता है। उसी अनार को स्थानीय बोली में दाड्ड कहते हैं, जिसे करसोग की तरफ से व्यापारी लोग बेचने लाते थे और उसका व्यापार बहुत अधिक होता था, लेकिन समय के साथ-साथ उन लोगों ने भी आना छोड़ दिया, मगर इस मेले का नाम इस वजह से दाडु मेला पड़ा, जो कि सराज घाटी का अंतिम मेला होता है।
उसके बाद मेले बंद हो जाते हैं और देवी-देवता अपने अपने मंदिरों में विराजमान होते हैं। यह मेला कमरूनाग का होता है साथ ही यहां चुंजवाला और देवी महामाया भी विराजमान होते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। इस तरह से लोगों ने आखिरी मेले पर बहुत खरीददारी की और खुशी-खुशी घर लौटे।