केंद्र को निर्देश, मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ भू-खंड आवंटित किया जाए
एजेंसी। नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केंद्र को निर्देश दिया कि नई मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर 5 एकड़ का भू-खंड आवंटित किया जाए। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का पटाक्षेप कर दिया।
रामलला विराजमान की ओर से बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने इस निर्णय पर प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए कहा कि यह बहुत ही संतुलित है और यह जनता की जीत है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं।
फैसले के मुख्य अंश पढ़कर सुनाने में लगे 45 मिनट
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने वकीलों और पत्रकारों से खचाखच भरे न्यायालय कक्ष में इस बहुप्रतीक्षित फैसले के मख्य अंश पढ़कर सुनाए और इसमें उन्हें 45 मिनट लगे।
1045 पन्नों के फैसले में पीठ ने यह कहा
संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में कहा कि नई मस्जिद का निर्माण प्रमुख स्थल पर किया जाना चाहिए। साथ ही उस स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित किया जाना चाहिए।
16 अक्तूबर को पूरी हुई थी सुनवाई
संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि 3 पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माेही अखाड़ा और रामलला विराजमान-के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्तूबर को सुनवाई पूरी की थी। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि 3 हिस्सों में बांटने का रास्ता अपना कर गलत तरीके से मालिकाना हक के मामले का फैसला किया।
1992 के बाद भड़के थे सांप्रदायिक दंगे
इस स्थान पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी जिसे कार सेवकों ने 6 दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था। विवादित स्थल गिराए जाने की घटना के बाद देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे।
फैसले के 4 प्रमुख आधार
1. एएसआई की रिपोर्ट से साफ है कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी। खुदाई में मस्जिद के नीचे विशाल संरचनाएं मिली हैं, उनमें जो कलाकृतियां पाई गईं, उससे पता चलता है कि वह इस्लामिक ढांचा नहीं था।
2. मुस्लिम पक्ष ने दावा किया था कि विवादित स्थल पर 1934 से 1949 तक नमाज पढ़ी जाती थी। संविधान पीठ ने इस दावे को नहीं माना। वहीं, हिंदू पक्ष यह साबित करने में कामयाब रहा कि बाहरी चबूतरे पर लगातार हिंदुओं का कब्जा था और वे वहां पूजा किया करते थे।
3. अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। ऐतिहासिक ग्रंथों के विवरण से चबूतरा, सीता रसोई, भंडारे से भी हिंदू पक्ष के दावे की पुष्टि होती है।
4. शिया बनाम सुन्नी केस में शिया वक्फ बोर्ड की अपील खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं पड़ता। 22 दिसंबर, 1949 की रात मस्जिद में मूर्ति रखी गईं। एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने।
टाइमलाइन
- 1528 : मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया।
- 1885 : महंत रघुबीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर कर विवादित ढांचे के बाहर शामियाना तानने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
- 1949 : विवादित ढांचे के बाहर केंद्रीय गुंबद में रामलला की मूर्तियां स्थापित की गईं।
- 1950 : रामलला की मूर्तियों की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए गोपाल सिमला विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर की।
- 1950: परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा जारी रखने और मूर्तियां रखने के लिए याचिका दायर की।
- 1959 : निर्माेही अखाड़ा ने जमीन पर अधिकार दिए जाने के लिए याचिका दायर की।
- 1961 : उत्तर प्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने स्थल पर अधिकार के लिए याचिका दायर की।
- 1 फरवरी, 1986 : स्थानीय अदालत ने सरकार को पूजा के लिए हिंदू श्रद्धालुओं के लिए स्थान खोलने का आदेश दिया।
- 14 अगस्त 1989 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के लिए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
- 6 दिसंबर, 1992 : रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ढांचे को ढहाया गया।
- 3 अप्रैल, 1993 : विवादित स्थल में जमीन अधिग्रहण के लिए केंद्र ने अयोध्या में निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून पारित किया। अधिनियम के विभिन्न पहलुओं को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई रिट याचिकाएं दायर की गईं। इनमें इस्माइल फारूकी की याचिका भी शामिल। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 139ए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रिट याचिकाओं को स्थानांतरित कर दिया जो उच्च न्यायालय में लंबित थीं।
- 24 अक्तूबर, 1994 : उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम से जुड़ी हुई नहीं है।
- अप्रैल, 2002 : उच्च न्यायालय में विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू।
- 13 मार्च, 2003 : उच्चतम न्यायालय ने असलम उर्फ भूरे मामले में कहा कि अधिग्रहीत स्थल पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है।
- 30 सितंबर, 2010 : उच्चतम न्यायालय ने 2:1 बहुमत से विवादित क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माेही अखाड़ा और रामलला के बीच 3 हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
- 9 मई, 2011 : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या जमीन विवाद में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई।
- 21 मार्च, 2017 : सीजेआई जेएस खेहर ने संबंधित पक्षों के बीच अदालत के बाहर समाधान का सुझाव दिया।
- 7 अगस्त : उच्चतम न्यायालय ने 3 सदस्यीय पीठ का गठन किया जो 1994 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
- 8 फरवरी, 2018 : सिविल याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई शुरू की।
- 20 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।
- 27 सितंबर : उच्चतम न्यायालय ने मामले को 5 सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजने से इनकार किया। मामले की सुनवाई 29 अक्तूबर को 3 सदस्यीय नई पीठ द्वारा किए जाने की बात कही।
- 29 अक्तूबर, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी के पहले हफ्ते में तय की जो सुनवाई के समय पर निर्णय करेगी।
- 24 दिसंबर : सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलों पर चार जनवरी, 2019 को सुनवाई करने का फैसला किया।
- 4 जनवरी, 2019 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मालिकाना हक मामले में सुनवाई की तारीख तय करने के लिए उसके द्वारा गठित उपयुक्त पीठ 10 जनवरी को फैसला सुनाएगी।
- 8 जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया जिसकी अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई करेंगे और इसमें न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ शामिल होंगे।
- 10 जनवरी : न्यायमूर्ति यूयू ललित ने मामले से खुद को अलग किया, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नई पीठ के समक्ष तय की।
- 25 जनवरी: उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए 5 सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। नई पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर शामिल थे।
- 29 जनवरी : केंद्र ने विवादित स्थल के आसपास 67 एकड़ अधिग्रहीत भूमि मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
- 26 फरवरी: उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और फैसले के लिए 5 मार्च की तारीख तय की जिसमें मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं इस पर फैसला लिया जाएगा।
- 8 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए विवाद को एक समिति के पास भेज दिया जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला बनाए गए।
- 9 अप्रैल: निर्माेही अखाड़े ने अयोध्या स्थल के आसपास की अधिग्रहीत जमीन को मालिकों को लौटाने की केंद्र की याचिका का उच्चतम न्यायालय में विरोध किया।
- 10 मई: मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 15 अगस्त तक समय बढ़ाई।
- 11 जुलाई: उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता की प्रगति पर रिपोर्ट मांगी।
- 18 जुलाई: उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देते हुए एक अगस्त तक परिणाम रिपोर्ट देने के लिए कहा।
- 1 अगस्त: मध्यस्थता की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को दी गई।
- 2 अगस्त : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता नाकाम होने पर 6 अगस्त से रोजाना सुनवाई का फैसला किया।
- 6 अगस्त: उच्चतम न्यायालय ने रोजाना के आधार पर भूमि विवाद पर सुनवाई शुरू की।
- 4 अक्तूबर: अदालत ने कहा कि 17 अक्तूबर तक सुनवाई पूरी कर 17 नवंबर तक फैसला सुनाया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा।
- 16 अक्तूबर: उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा।
- 9 नवंबर : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में पूरी 2.77 एकड़ विवादित जमीन रामलला को दी, जमीन का कब्जा केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मुस्लिमों को मस्जिद बनाने के लिए एक मुनासिब स्थान पर 5 एकड़ भूमि आवंटित करने का भी निर्देश दिया।