शकील कुरैशी : शिमला
प्रदेश सरकार के आबकारी एवं कराधान महकमे के अफसरों की ढीली कारगुजारी के चलते सरकार को चूना लगा है। लाखों रुपये की राशि जो ब्याज के रूप में शराब ठेकेदारों और डिस्टलरी से वसूली जानी चाहिए थी उसकी वसूली आबकारी महकमा नहीं कर पाया जिससे सरकारी खजाने को चूना लगा है। महालेखाकार ने आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली पर कई सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 282 शराब लाइसेंसधारियों और सात बॉटलिंग प्लांट्स से लाइसेंस फीस के विलंबित भुगतान पर 89.70 लाख एवं बोतलीकरण फीस के विलंबित भुगतान पर 44.55 लाख की ब्याज राशि की मांग न करने से इतने ब्याज की वसूली नहीं हो सकी।
आबकारी नीति 2018-19 के अनुसार यदि लाइसेंसधारी माह के भीतर न्यूनत्तम गारंटीकृत कोटा नहीं उठाता है तो उसे माह के अंतिम दिन उस महीने के खुदरा आबकारी शुल्क की पूरी किस्त चुकानी होगी। साथ ही मार्च माह के लिए खुदरा आबकारी शुल्क का पूरा भुगतान 15 मार्च तक करना होगा। देय तारीख पर यदि लाइसेंसधारी इस राशि को चुकता नहीं करता है तो उसे एक माह तक 14 फीसदी की दर से ब्याज का भुगतान करना होगा। यदि लाइसेंसधारी खुदरा आबकारी शुल्क का अगले माह के अंतिम दिन तक भी अदायगी नहीं करता है तो उसके बिक्री केंद्र को सील किया जा सकता है।
इस तरह के प्रावधान पॉलिसी में रखे गए हैं लेकिन चार उपायुक्तों के अभिलेखों की समीक्षा में सामने आया है कि 536 बिक्री केंद्रों में से 282 बिक्री के्रंद्रों के लाइसेंसधारियों ने 47.01 करोड़ का खुदरा आबकारी शुल्क तय तारीख के बाद जमा किया। दो ठेकेदारों ने 196 दिनों के बाद तथा 45 मामलों में 100 दिनों की देरी से यह शुल्क जमा करवाया गया। इससे यह लोग 89.70 लाख रुपये की ब्याज राशि चुकता करने के उत्तरादायी थे जिनसे वसूली नहीं की गई।
44.55 लाख की ब्याज राशि नहीं मिली
इसी तरह तीन उपायुक्तों के अधीन सात बॉटलिंग प्लांट्स, डिस्टिलरी ने तीन से 389 दिनों के बीच विलंब के साथ 7.17 करोड़ की बोतलीकरण फीस जमा की थी। इसके विलंबित भुगतान के तहत अपेक्षित 44.55 लाख रुपये की ब्याज राशि विभाग को हासिल नहीं हुई जिसकी विभाग ने वसूली नहीं की।
अधिकारियों की लापरवाही आई सामने
कैग में कहा गया है कि आबकारी महकमे को 2016 से 2019 के बीच बार-बार कहने के बावजूद यह वसूली नहीं की जा सकी जिसमें अधिकारियों की लापरवाही सामने आती है। इससे सरकार को राजस्व की हानि पहुंची है। इसके बाद मात्र 20.75 लाख की वसूली ही हो सकी। महालेखाकार ने कहा है कि इस तरह की कार्यप्रणाली सरकारी खजाने के लिए ठीक नहीं है जिसे दुरूस्त किया जाना चाहिए।