पंकज ठाकुर ज्वालामुखी।
गरीबी इतनी की ना तो सिर ढकने के लिए मकान है ना ही कोई परवरिश करने वाला। कारणवश अपने दो चाचा के पास रहकर बड़ी मुश्किल से जिंदगी का एक-एक दिन गुजार रहे हैं। माता पिता की मौत के बाद अनाथ हुए दोनों दसवीं व बाहरवीं के विद्यार्थी हैं लेकिन जिस हालात में दोनों रह रहे हैं जान कर कोई भी सिहर उठे।
हम बात कर रहे हैं उपमंडल ज्वालामुखी की घुरकाल ग्राम पंचायत के महेश और मोहित की। संसाधनों के आभाव में बड़ी मुश्किल जिंदगी जी रहे दोनों नावालिग इस आस में है कि कोई एक ना एक दिन उनकी दुर्दशा को देखकर आसरा जरूर देगा। सरकारी स्कूल में पढ़ने के कारण शिक्षा पर खर्चा अधिक नहीं है। लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए जिन चाचा ने सहारा दिया, कोरोना ने उनके भी हाथ खड़े करवा दिये हैं।
बच्चों के चाचा सुरेश व दीपकमल ने बताया कि 2006 में महेश मात्र पांच दिन का था कि उसकी मां चल बसीं। जबकि मोहित उस समय डेढ़ साल का था। या यूं कहें कि दोनों को अपनी मां का चेहरा भी याद नहीं होगा कि मां कैसी थी। महेश और मोहित की तकदीर ने एक और झटका तब दिया जब 2017 में घर से साथ लगती व्यास नदी में नहाने गए उनके पापा पैर फिसलने से डूब गए। उनकी लाश 5 दिन बाद देहरा से रेस्क्यू की गई थी। बच्चों की परवरिश बराबर की।लेकिन कोरोना ने उनके हाथ खड़े कर दिए हैं। पांच महीने से दिहाड़ी मजदूरी करके परिवार चलाने वाले चाचा कहते हैं कि उन्हें अब भी मजदूरी नहीं मिल रही 2 दिन काम मिलता तो पांच दिन लगाकर खाते हैं।
परिवार को बीपीएल में नहीं लिया गया है। जबकि महेश और मोहित को पन्द्रह दिन पहले ही बीपीएल के लिए चयनित किया गया है। बच्चे अपने हिस्से आए उस टूटे हुए गौशाला के कमरे में रहते हैं जहां बिजली नहीं लगी है। वो इसलिए कि मीटर लगवाया तो बिल कौन भरेगा। मोहित ने बताया कि नाबालिग होने की बजह से उन्हें कोई दिहाड़ी पर भी नहीं लगाता। चाचा खाना देते हैं। तो कभी कभी गांव के लोग भी मदद देते हैं जिससे वे स्कूल जा पाते हैं। कोरोना से बिगड़ी हुईं व्यवस्थाओं ने परिवार को रोटी के लिए भी मोहताज कर दिया है। सुरेश व दीपकमल कहते हैं कि उनकी स्थानीय प्रशाशन व विधायक से गुजारिश है कि इन दोनों अनाथ बच्चों की जिंदगी बर्वाद होने से बचाने के लिए कम से कम रहने के लिए दो कमरे तो बनवा दें। साथ ही सरकारी सहायता दिलवाई जाए ताकि इनकी आगे की पढ़ाई व देखभाल ढंग से हो सके।