सोलन के किसान शैलेंद्र बोले, प्राकृतिक खेती से हुआ समस्या का समाधान, उत्पादन लागत घटी और आय में हुई बढ़ोतरी
हिमाचल दस्तक ब्यूरो। शिमला : रासायनिक खेती के उत्पाद प्रयोग करने वाले लोगों में जहां कई प्रकार की बीमारियां घर कर रही हैं, तो वहीं खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग करने वाले किसानों को भी कई प्रकार की बीमारियां हो रही हैं। सोलन के दयारग गांव के किसान शैलेंद्र शर्मा ने बताया कि रासायनिक खेती में कीटनाशकों के प्रयोग से उन्हें कई तरह की बीमारियां हो रही थीं।
रसायनों के छिड़काव से शरीर में एलर्जी होती थी, जिससे सिरदर्द, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं पेश आ रही थीं। हर साल फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग से उत्पादन लागत बढ़ रही थी, जबकि उत्पादन में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हो रही थी। ऐसे में उन्हें सुभाष पालेकर शून्य लागत प्राकृतिक खेती के बारे में पता चला। प्राकृतिक खेती से जहां एलर्जी, सिरदर्द व अन्य बीमारियों से छुटकारा मिला। वहीं उत्पादन लागत भी शून्य हो गई और उत्पादन में भी बढ़ोतरी हुई है।
शैलेंद्र बताते हैं कि रासायनिक खेती करते समय हर वर्ष रसायनों पर करीब 70 हजार के करीब का खर्च आता था, जबकि प्राकृतिक विधि से खेती करने पर उत्पादन लागत बिल्कुल शून्य हो गई है। इस विधि में खेतों में हानिकारक कीटों से निपटने के लिए प्रयोग होने वाले कीटनाशकों को वह स्वयं ही तैयार करते हैं। शैलेंद शर्मा कुल 5 बीघा में प्राकृतिक विधि से खेती कर रहे हैं। वह 9 पॉलीहाउस में शिमला मिर्च, मटर, टमाटर समेत अन्य फसलों की उगा रहे हैं। एक साल में ही उन्होंने प्राकृतिक खेती से 12 लाख रुपये का मुनाफा कमाया है।
गंगानगर से लाई रेड सिंधि नस्ल की गाय
शैलेंद्र शर्मा ने प्राकृतिक खेती विधि से तैयार होने वाले कीटनाशकों के लिए रेड सिंधि नस्ल की दो गाय भी पाली हुई है। इन गायों को राज्यस्थान के गंगानगर से लाया गया हैं। खास बात यह है कि उन्होंने करीब एक साल पहले ही शिमला के कुफरी में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग ली है।
प्राकृतिक खेती के साथ अपना रहे आधुनिक तकनीक
शैलेंद्र शर्मा प्राकृतिक खेती के साथ-साथ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। शैलेंद्र ने खेती के लिए जो मॉडल तैयार किया है उसे देखने के लिए न सिर्फ उनके गांव के लोग आ रहे हैं बल्कि अन्य क्षेत्रों से भी लोगों उनके पॉलीहाउस का दौरा कर रहे हैं।