हिमाचल दस्तक। नाहन
सिरमौर जिले का राजकीय उच्च विद्यालय नौरंगाबाद अपने विद्यार्थियों को डर्मेटोग्लाइफिक्स मल्टीपल इंटेलिजेंस टेस्ट (डीएमआईटी) सुविधाएं देने वाला प्रदेश का पहला स्कूल बनेगा। डर्मे का अर्थ चमड़ी और ग्लाई का अर्थ मोड अर्थात त्वचा पर बने हुए मोड होता है।
विद्यालय में दी जाने वाली इस सुविधा से बच्चों के एक फिंगर प्रिंट से उनकी सारी क्षमताओं और दक्षताओं का पता उन्हें और उनके अभिभावकों को चल जाएगा कि भविष्य में किस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए या क्या करियर चयनित करना चाहिए।
वास्तव में अंगुलियों, हाथों या पैरों पर त्वचा के निशान या पैटर्न का अध्ययन करना डर्मेटोग्लाइफिक्स कहलाता है। चूंकि प्रत्येक मनुष्य के पास जन्म के समय कम से कम 8 अनुवांशिक क्षमताएं होती हैं, जिन्हें मल्टी इंटेलीजेंस कहा जाता है। अधिकतर लोग जीवनभर इन क्षमताओं और दक्षताओं से अनभिज्ञ बने रहते हैं, मगर किसी भी छात्र की डीएमआईटी हो जाने से उसे अपनी आंतरिक क्षमताओं और दक्षताओं का ज्ञान होने पर करियर चयनित करने की भटकने से बचने में सहायता मिलेगी। साथ ही सही विकल्प का चयन करके भविष्य में सफलता की प्रतिशत कई गुणा बढ़ जाएगी।
इस टेस्ट से बच्चों और बड़ों के व्यक्तित्व में निखार लाने की प्रक्रिया भी अमल में लाई जा सकती है। स्कूल के मुख्याध्यापक डॉ. संजीव अत्रि ने बताया कि इस केंद्र को स्थापित करने के लिए देश की एक बड़ी संस्था से सहमति हुई है। मई माह के अंत तक यह केंद्र विद्यालय में स्थापित होने की संभावना है। इस केंद्र के लिए विद्यालय में 2 शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
केंद्र का लाभ सामान्य शुल्क देकर अन्य विद्यालय के विद्यार्थी भी उठा पाएंगे। उन्होंने बताया कि इस वैज्ञानिक प्रक्रिया में विद्यार्थी के एक फिंगर प्रिंट से 48 पृष्ठों की एक रिपोर्ट तैयार मिलेगी। इस रिपोर्ट में विद्यार्थी की पिछली पीढ़ी की दक्षताओं का पता चल सकेगा। इस टेस्ट को 4 माह के बच्चे से 45 वर्ष तक की आयु का कोई भी व्यक्ति लाभ उठा सकेगा।
इस रिपोर्ट से बच्चे यह भी जान पाएंगे कि किसी भी चीज को सीखने में कौन सी पद्धति उनके लिए सहायक होगी। उन्होंने कहा कि यह केंद्र विद्यालय में एक नए कसेंप्ट वर्क स्टूडियोज के तहत स्थापित किया जा रहा है।
वर्क स्टूडियोज में बच्चों को 3 नए व्यावसायिक प्रशिक्षण मधुमक्खी पालन, मूर्तिकला और मोमबत्ती व साबुन निर्माण भी सिखाया जाएगा। बच्चों को उनके उत्पादों की कीमत विद्यालय देगा। विद्यालय उन्हें आगे बेचकर विकास कार्यों के लिए धन जुटाएगा।