विजय ठाकुर : सरकाघाट ।
सरकाघाट से अफगानिस्तान गए नवीन ठाकुर ने घर वापस आने पर बताया कि 15 अगस्त को तालिबान के हमलों से उन्हें अपने जीवन की कोई आस नही रही थी और उन्होंने सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया था। अपने अनुभव सांझा करते हुए नवीन ठाकुर ने बताया कि वे ब्रिटिश कम्पनी अल्लादीन के सौजन्य से डेनमार्क दूतावास के वीजा पर अफगानिस्तान गए थे और उनके साथ 18 और युवा भी जो देश के विभिन्न स्थानों से थे वहीं काम कर रहे थे।
जब तालिबान का हो-हल्ला पड़ा तो कम्पनी के मैनेजर ने उन्हें होटल के अंदर ही रहने को कहा,लेकिन तालिबानी लूटेरे होटल के अंदर भी आ गये और उन्हें बाहर निकाल दिया। बाहर चारों ओर अफरातफरी मची हुई थी तथा भगदड़ मची हुई थी। बुजुर्गों और बच्चों को लोग भगदड़ में पैरों तले रौंद रहे थे लेकिन उन सभी 18 लोगों ने हाथों की चेन बना कर एक दूसरे का हाथ नहीं छोड़ा और उसके बाद उनको डेनमार्क दूतावास ने सुरक्षा प्रदान कर एयरपोर्ट से 15 किलोमीटर की दूरी पर रखा लेकिन वहां उनके लिए बेस कैंप लगाकर जब उनकी व्यवस्था की जारही थी तो वहां पर तालिबान के भय से करीब 700 लोग और उस बेस कैंप में आ गये।
लेकिन इतने लोगों के आने से सारी व्यवस्था गड़बड़ा गई और दो दिनों तक ज़मीन पर बैठकर रहना पड़ा तथा दो रातों को नंगी ज़मीन पर ही सोये। तीसरे दिन उन्हें भारतीय दूतावास की सहायता से काबुल में बैरन होटल में उनका बेस कैंप लगाकर रखा गया और खाने को बिस्कुट और चाय पीने को मिली। बैरन होटल के बाहर से उन्हें तालिबानी लुटेरों की बाहर निकलने की चेतावनी मिल रही थी लेकिन डेनमार्क की पुलिस और सेना के आगे वे कुछ नहीं कर सके।
तीन दिनों के बाद उनके डॉक्युमेंट्स को ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों ने चेक किया और उसके बाद उन्हें सुरक्षित अपने देश भेजने का भरोसा दिलाया।साथ ही उनके खाने पीने और रहने की भी भारतीय दूतावास के माध्यम से पृरी व्यवस्था हो गई और जब वे 21 अगस्त को हवाई जहाज पर चढ़े तो बचने की पृरी उम्मीद बन्ध गई। 22 अगस्त को वे अपने अन्य साथियों के साथ दिल्ली एयरपोर्ट पँहुचे तथा कानूनी औपचारिकता पूरी करने के बाद अपने अपने घरों को भेज दिए गए।नवीन ने बताया कि घर आकर वे सकून से हैं और गत 8 दिनों का अनुभव उम्र भर याद रहेगा।