हिमाचल दस्तक ब्यूरो। शिमला : प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश जारी किए हैं कि वह नवीनतम स्टेटस रिपोर्ट के माध्यम से न्यायालय को यह बताएं कि उन्होंने इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला और डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में एमआरआई की मशीन को स्थापित करने के लिए क्या कदम उठाए हैं? इसके अलावा सीटी स्कैन की मशीन का इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में गतिशील किए जाने को लेकर भी स्पष्टीकरण मांगा है।
मामले पर सुनवाई 26 फरवरी, 2020 को निर्धारित की गई है। मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी और न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने न्यायालय द्वारा समाचार पत्रों में छपी खबरों पर संज्ञान लेने के पश्चात जनहित में ट्रीट की गई याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किए। खबरों के अनुसार इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में एमआरआई की मशीन कार्य करने की स्थिति में नहीं है जिसे कि बार-बार मरम्मत की आवश्यकता पड़ती रहती है।
इससे मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है और उन्हें मजबूरन चंडीगढ़ के पीजीआई में जाना पड़ता है। प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने पिछले आदेशों में राज्य सरकार को यह आदेश जारी किए थे कि वह न्यायालय को बताएं कि इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज व पूरे प्रदेश में कितनी एमआरआई मशीनें उपलब्ध हैं।
क्या एमआरआई मशीनें गतिशील स्थिति में हैं और उससे मरीजों को फायदा पहुंच रहा है या नहीं? न्यायालय को यह भी बताने को कहा था कि कितने ऐसे मरीज हैं जो कि एमआरआई टेस्ट करवाने के लिए वेटिंग लाइन में हैं?
सरकार ने बताया, टेंडर कर रहे एमआरआई के लिए
राज्य सरकार की ओर से न्यायालय को यह बताया गया कि इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला और टांडा में एमआरआई मशीनें गतिशील स्थिति में हैं और वहां आने वाले मरीजों के टेस्ट सुचारू रूप से किए जा रहे हैं। एमआरआई मशीनें लगाने के लिए टेंडर आमंत्रित किए जा रहे हैं। कोर्ट की सुनवाई के दौरान कोर्ट मित्र ने न्यायालय को यह बताया कि आईजीएमसी और राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में केवल एक एक ही एमआरआई मशीनें हैं। जिन्हें कि वर्ष 2006 और 2007 में स्थापित किया गया था। सीटी स्कैन मशीन को वर्ष 2009 में लगाया गया था। जिसे की बदलने की आवश्यकता है।
लोक सेवा आयोग की नियुक्तियों पर नसीहत
- हाईकोर्ट ने कहा उम्मीद है सरकार इसके लिए कोई नियम बनाएगी
- मीरा वालिया के खिलाफ दायर याचिका भी खारिज की हाईकोर्ट ने
हिमाचल दस्तक ब्यूरो। शिमला : मीरा वालिया को लोक सेवा आयोग का सदस्य बनाए जाने को चुनौती देने वाली याचिका को प्रदेश उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि मीरा वालिया की नियुक्ति करते समय भारतीय संविधान द्वारा दिए गए सिद्धांतों की पूर्णतया पालना की गई है।
न्यायालय ने कहा कि हालांकि मीरा वालिया के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी, मगर शिमला की विशेष अदालत द्वारा उन्हें इस आरोप से बरी कर दिया गया है और स्पेशल जज द्वारा पारित निर्णय को किसी भी न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी गई है। इन तथ्यों के दृष्टिगत हाईकोर्ट ने पाया कि प्रार्थी उपरोक्त याचिका को लेकर कोर्ट के समक्ष स्पष्ट छवि, स्वच्छ आत्मा और स्वच्छ मन से नहीं आया है।
न्यायालय ने कहा कि हालांकि यह याचिका कॉस्ट के साथ खारिज किए जाने योग्य है, मगर प्रार्थी को कानून का विद्यार्थी होने और कानून का पालन करने वाला नागरिक पाते हुए उस पर कॉस्ट लगाने के आदेश पारित नहीं किए। न्यायालय ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि राज्य सरकार में वर्तमान में आयोग के अध्यक्ष पद की नियुक्ति के लिए कोई भी मापदंड और दिशानिर्देश जारी नहीं किए हैं।
राज्य सरकार और राज्यपाल को इन पदों पर नियुक्ति देने के लिए बड़े स्तर पर निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है। न्यायालय ने राज्य सरकार से यह आशा जताई कि वह भविष्य में आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों के पदों पर चयन व नियुक्ति के लिए प्रशासनिक दिशानिर्देश और मापदंड जारी करेगी, जिससे कि मनमाने तरीके से इन पदों पर होने वाली नियुक्ति पर रोक लगे।