जीवन ऋषि : धर्मशाला
प्रदेश के सैकड़ों बागवानों की आर्थिकी और सुदृढ़ होगी। फलों का राजा आम अब बागवानों की आय में जबरदस्त इजाफा करेगा। कांगड़ा के जाच्छ अनुसंधान केंद्र में आम की 6 नई किस्मों पर ट्रायल कामयाब रहा है, जो अगस्त और सितंबर के बीच फल देंगी। कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, मंडी, सोलन और सिरमौर में इन किस्मों से अच्छी पैदावार हो सकेगी। आम की इन नई किस्मों से १० गुणा तक पैदावार बढ़ेगी और इसका सीधा फायदा बागवानों को मिलेगा।
इन नईं किस्मों की सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि कम जमीन पर अधिक पौधे लगाए जा सकेंगे और चार साल बाद फल देना शुरू कर देंगे। अनुसंधान केंद्र में इन किस्मों का ट्रायल सफल होने के बाद प्रदेश के बागवानों को कमाई का नया जरिया मिलेगा। अमूमन देशभर का आम फरवरी तक मार्केट में आना शुरू हो जाता है। जहां तक हिमाचली आम की बात करें तो यह जुलाई में मार्केट में पहुंचता है। इसमें दशहरी, लंगड़ा या चौसा आदि प्रमुख किस्में होती हैं।
जुलाई में बाजार में हिमाचली आम की एंट्री उतना प्रभावित नहीं कर पाती है, क्योंकि लोग फरवरी से ही आम का स्वाद चख रहे होते हैं। इसी कारण हिमाचली आम को मार्केट में अच्छी कीमत नहीं मिल पाती और बागवानों को काफी नुकसान झेलना पड़ता है। इन नई किस्मों की बात करें तो ये 20 अगस्त से लेकर 15 सितंबर तक मार्केट में आएंगी। यह वह दौर होता है जब देश के अन्य राज्यों में आम का सीजन सिमटने को होता है।
ऐसे समय मे जब हिमाचली आम की नई किस्मों की एंट्री बाजार में होगी तो इससे बागवानों की आय में कई गुणा इजाफा होगा। गौर रहे कि देश में आम की करीब एक हजार के करीब किस्में हैं, जिनमें से हिमाचल में केवल पचास ही पाई जाती हैं। आम की नई किस्मों का एक यूनिट १० मीट्रिक टन आम की फसल देगा, जबकि परंपरागत आम का एक यूनिट महज एक मीट्रिक टन देता है। वैसे भी आम की राष्ट्रीय पैदावार की औसत प्रति हेक्टेयर 12 मीट्रिक टन है, जबकि अकेले कांगड़ा जिला की बात करें तो यह १.१२ मीट्रिक टन है।
आम की नई किस्में बागवानों को व्यवसाय से बिजनेस की ओर ले जाने में मील का पत्थर साबित होंगी। इसलिए बागवानों को नई किस्मों की ओर बढऩा होगा। नेरी हमीरपुर और पूसा दिल्ली में नई किस्में मौजूद हैं। जाच्छ केंद्र में नई किस्में आने में कम से कम 2 साल लगेंगे।
-डॉ. कमलशील नेगी
डिप्टी डायरेक्टर, बागवानी विभाग।