मंत्रिमंडल ने दी मंजूरी, 2007 में वीरभद्र सिंह कैबिनेट ने लिया था अपने अधीन
अजय कुमार। नवाही : सरकाघाट के पौराणिक माता नवाही देवी मंदिर का सरकार एक बार फिर से अधिग्रहण करने जा रही है। हिमाचल मंत्रिमंडल ने माता नवाही देवी मंदिर के अधिग्रहण को मंजूरी दी है। इस मंदिर का अधिग्रहण सबसे पहले साल 2007 में तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने किया था।
जब अधिग्रहण का काफी विरोध हुआ तो फिर तत्कालीन प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने 2009 में मंदिर अधिग्रहण की अधिसूचना को वापस ले लिया था। हिमाचल सरकार माता नवाही देवी मंदिर का अधिग्रहण हिमाचल प्रदेश हिंदू सार्वजनिक धार्मिक स्थान एवं पूर्त विन्यास अधिनियम 1984 के तहत करेगी। पहले भी इसी अधिनियम के तहत अधिग्रहण किया गया था। मंदिर, 2007 से ही सरकार के अधिकारियों के पास है और आज भी मंदिर अधिकारी सरकाघाट के वर्तमान तहसीलदार दीनानाथ यादव हैं।
मंदिर का पहली बार अधिग्रहण होने के बाद से ही मंदिर सरकारी कब्जे में ही रहा है और इसका संचालन तथा रखरखाव आज भी प्रशासनिक अधिकारी ही कर रहे हैं। जबकि दोबारा अधिग्रहण का फैसला मंत्रिमंडल सुना चुका है। मंदिर में पुजारी का दायितत्व निभाने वाले करीब 40 लोग हैं और एक दिन में औसतन तीन पुजारी मंदिर का कामकाज निपटाने के लिए तैनात रहते हैं। प्रशासन इन पुजारियों तथा सेवादारों को पगार के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को 2500 रुपये पगार देता है।
मंदिर की सुरक्षा को दो गाड्र्स तथा एक चपड़ासी राजस्व विभाग द्वारा तैनात किया गया है। इसके अलावा दान पात्रों पर प्रशासन का ताला लटका हुआ है और यह दान पात्र साल में प्रशासनिक पहरे में सिर्फ तीन बार ही खोले जाते है। दानपात्रों में मौजूद धनराशि को राजस्व विभाग के पटवारी और कानूनगो द्वारा गिना जाता है और फिर बैंक में जमा करवाया जाता है। मंदिर अधिकारी दीनानाथ यादव ने बताया कि फिलहाल मंदिर सरकारी अधिग्रहण में ही है।
सरकार ने फिर से अधिग्रहण का फैसला तो लिया है लेकिन इसमें नया क्या है। फिलहाल इसकी जानकारी नही है। दूसरी तरफ हिमाचल हाईकोर्ट में मंदिर अधिग्रहण की वकालत करने वाले विनोद कुमार ने बताया कि कोर्ट के आदेशों की पालना करते हुए ही एक बार फिर से जयराम सरकार ने अधिग्रहण का फैसला लिया गया है।
क्यों हुआ दोबारा अधिग्रहण
साल 2009 में तत्कालीन धूमल सरकार द्वारा मंदिर को सरकारी नियंत्रण से बाहर करने के फैसले को विनोद कुमार ने हाईकोर्ट में चुनौती दे दी थी। इसके बाद 2014 में हिमाचल हाईकोर्ट ने अधिग्रहण को लेकर दायर इस याचिका को रद करते हुए याचिकाकर्ता और संबंधित पक्षों को भाषा एंव संस्कृति विभाग के प्रधान सचिव के पास अपना पक्ष रखने के आदेश दिए थे।
हाईकोर्ट के आदेश में ही यह भी स्पष्ट किया गया था कि नवाही देवीे मंदिर में स्थिति यथावत बनाई रखी जाए। जिसके चलते मंदिर रहा तो सरकारी अधिग्रहण में ही लेकिन सरकारी कागजों में मंदिर का अधिग्रहण दर्ज नही हो पाया। जिसके बाद मंडी डीसी ने सभी पक्षों को सुनकर एक रिपोर्ट सरकार को भेजी थी।
13 से 15 लाख का चढ़ावा
माता नवाही देवी में औसतन 13 से 15 लाख का चढ़ावा चढता है। मंदिर में रखे दान पात्र साल में सिर्फ तीन बार ही खोले जाते है। दान पात्रों के चढ़ावे से पुजारियों का कोई नाता नही है और यह सारा चढ़ावा प्रशासन द्वारा बैंक में डाल दिया जाता है। मंदिर अधिकारी सहित दो सुरक्षा गार्डस और एक चपड़ासी की तैनाती प्रशासन द्वारा की गई है।
माता नवाही देवी मंदिर के अधिग्रहण के पीछे चढ़ावे का दुरुपयोग तथा पुजारियों सहित मंदिर कमेटी के आपसी विवाद बड़ा कारण रहे हैं। मंदिर में विवादों का दौर साल 2005 से ही शुरू हो गया था जिस कारण सबसे पहले मंडी डीसी के आदेशों पर साल 2005 के 15 मार्च को सरकाघाट के एसडीएम ने मंदिर को कब्जे में
लिया था।