- शिकायत पर बिना जांच तत्काल होगी एफआईआर और गिरफ्तारी
- सुप्रीम कोर्ट ने डेढ़ साल पुराना अपना फैसला लिया वापस
- केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनाया फैसला
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति और जनजाति (उत्पीडऩ से संरक्षण) कानून के तहत गिरफ्तारी के प्रावधानों को हल्का करने संबंधी शीर्ष अदालत के 20 मार्च, 2018 के फैसले में दिए गए निर्देश मंगलवार को वापस ले लिए।
कोर्ट द्वारा पुराना फैसला वापस ले लेने के बाद अब फिर से एससी-एसटी कानून के तहत की गई शिकायतों के मामले में बिना जांच तत्काल प्रभाव से एफआईआर दर्ज हो सकेगी। आरोपी शख्स की तुरंत गिरफ्तारी भी हो सकेगी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर यह फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि समाज में समानता के लिए अनुसूचित जाति और जनजातियों का संघर्ष देश में अभी खत्म नहीं हुआ है। न्यायालय ने कहा कि इन वर्गाें के लोग आज भी अस्पृश्यता का सामना कर रहे हैं और वे बहिष्कृत जीवन गुजारते हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत अजा-अजजा वर्ग के लोगों को संरक्षण प्राप्त है, लेकिन इसके बावजूद अभी तक उनके साथ भेदभाव हो रहा है। इस कानून के प्रावधानों के दुरुपयोग और झूठे मामले दायर करने के मुद्दे पर न्यायालय ने कहा कि यह जाति व्यवस्था की वजह से नहीं, बल्कि मानवीय विफलता का नतीजा है। पीठ ने इस कानून के तहत गिरफ्तारी के प्रावधान और कोई भी मामला दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने के निर्देशों को अनावश्यक करार दिया और कहा कि न्यायालय को अपने पूर्ण अधिकार का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था।
पीठ ने कहा कि संविधान के तहत इस तरह के निर्देश देने की अनुमति नही है। पीठ ने 18 सितंबर को इस पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई पूरी की थी। पीठ ने न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ के 20 मार्च, 2018 के फैसले पर टिप्पणी करते हुए सवाल उठाया था कि क्या संविधान की भावना के खिलाफ कोई फैसला सुनाया जा सकता है। पीठ ने कानून के प्रावधानों के अनुरूप समानता लाने के लिए कुछ निर्देश देने का संकेत देते हुए कहा था कि आजादी के 70 साल बाद भी देश में अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों के साथ भेदभाव और अस्पृश्यता बरती जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देशभर में प्रदर्शन हुए थे
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत आरोपी की सीधे गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी। इस आदेश के मुताबिक मामले में अंतरिम जमानत का प्रावधान किया गया था और गिरफ्तारी से पहले पुलिस को एक प्रारंभिक जांच करनी थी। इस फैसले के बाद एससी/एसटी समुदाय के लोगों ने देशभर में व्यापक प्रदर्शन किए थे।
शीर्ष अदालत ने कहा
यह फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने कहा कि एससी-एसटी वर्ग के लोगों को अभी भी देश में भेदभाव और छुआछूत जैसी चीजों का सामना करना पड़ रहा है। अभी भी उनका सामाजिक तौर पर बहिष्कार किया जा रहा है। देश में समानता के लिए उनका संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है।
क्या है एससी/ एसटी एक्ट?
यह कानून अनुसूचित जाति व जनजाति (एसटी/एसटी) के लोगों की सुरक्षा के लिए 1989 में बनाया गया था। इसका मकसद एससी व एसटी वर्ग के लोगों के साथ अन्य वर्गों द्वारा किया जाने वाले भेदभाव और अत्याचार को रोकना है। इस कानून में एससी व एसटी वर्ग के लोगों को भी अन्य वर्गों के समान अधिकार दिलाने के प्रावधान बनाए गए।
20 मार्च 2018 का यह था फैसला
20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एससी/ एसटी एक्ट मामले में बिना जांच के तत्काल एफआईआर और गिरफ्तारी के प्रावधान पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने बड़े पैमाने पर इस कानून के गलत इस्तेमाल किए जाने की बात मानी थी। फैसला दिया था कि इस कानून के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। न ही तुरंत एफआईआर की जाएगी।