उदयबीर पठानिया: हाथ: पकड़-जकड़
कांग्रेस में एक बार फिर सीएम-सीएम बनने का खेल शुरू हो गया है। कांग्रेस भले ही सत्ता में हो या विपक्ष में यह खेल किन्हीं भी आम विधानसभा चुनावों के दो साल पहले शुरू हो जाता है। खास बात यह है कि कई दशकों से इस खेल में एक तरफ सिर्फ वीरभद्र सिंह अकेले खड़े रहते हैं और दूसरी तरफ उनके अपनी ही पार्टी के विरोधियों की जमात।
इस बार खास बात यह है कि बुजुर्ग वीरभद्र सिंह तो जस के तस बने हुए हैं, मगर उनको टक्कर देने वाले चेहरे और उनके कमांडर सब अधेड़ हैं। सबसे बड़ी बात यह भी है कि पहले वीरभद्र सिंह से जो नेता भिड़ते थे, उनका लीडर कोई एक होता था। इस बार जितने लीडर हैं, सब के सब सीएम बनने के लिए ही ताकत झोंक रहे हैं। इनके पीछे वही जमात है, जिसका कद ज्यादा से ज्यादा सत्ताकाल में भी चेयरमैन-डायरेक्टर बनने से अधिक नहीं है। टिकट की दावेदारी के आसपास भी यह नहीं फटकते हैं।
अब यह जंग फिर शुरू हो गई है। बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा, चंबा, मंडी और तो और सिरमौर तक से सीएम पद के दावेदार कांग्रेस से निकलने शुरू हो गए हैं। सब अपने मुकाबले में वीरभद्र सिंह को ही आंक रहे हैं। अब बेताबी इतनी ज्यादा बढ़ती जा रही है कि सरेआम मंचों से इन नेताओं के समर्थक अपने-अपने आकाओं को 2022 का मुख्यमंत्री खिताब देने शुरू हो गए हैं। मजे की बात यह है कि सियासी माहिर भी चटखारे लेने से परहेज नहीं बरत रहे हैं।
इनका कहना है कि सीएम बनने के दावेदारों में एक भी नेता ऐसा नहीं है, जिसके बाबत यह कहा जा सके कि वह 2022 के चुनावों में अपनी सीट निकाल लेगा। माहिर तीखा कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि सीएम बनने का दावा करने से पहले नेताओं को यह भी परखना चाहिए कि क्या 68 सीटों में क्या 10 पर अपना प्रभाव रखते हैं? जहां पर वह अपना करिश्मा दिखा पाएं?
कांग्रेस के मौजूदा माहौल पर वह तीखी टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि शासन के लिए जरूरी अनुशासन नाम की कोई चिडिय़ा पार्टी की किसी डाली पर नजर नहीं आती। वह तंज कसते हुए कहते हैं कि यूथ कांग्रेस में ही दो-दो प्रधान हैं, तो रास्ते भी दो-दो ही होंगे। ऐसे में कांग्रेस दो बेडिय़ों पर खुद ही सवार हुई पड़ी है। डूबने के लिए कश्तियों की हर तरफ जगह खाली है,और टारगेट हिट करने के लिए नीति कोई नहीं है।
कांग्रेसी कार्यकर्ता भी इस वजह से खासे खिन्न हैं। यह कहते हैं कि पार्टी की तरफ से फॉलो करने के लिए कोई कार्यक्रम, सोच और विजन नहीं है, जबकि नेताओं को फॉलो करने के लिए हर रास्ता बनाया गया है। खैर, कांग्रेस में सीएम-सीएम खेल खूब हिट हुआ पड़ा है। जमीन पर हालात बदतर तो हवा में महल खड़े किए जा रहे हैं।
वीरभद्र सिंह बैठे-बैठे तो विरोधी…
कांग्रेस का एक बड़ा तबका यह मानता है कि वीरभद्र सिंह बिना उठे या हिले हुए भी कांग्रेसी नेताओं की चूलें, संगठन की नींव हिला और जमा सकते हैं। वीरभद्र का जो रुतबा बैठे-बैठे हैं। इनकी एक अपील सीएम बनने की दलीलें देने वालों के लिए काफी रहेगी।