अजय कुमार। मंडी:
हाईड्रो प्रोजेक्ट के टरबाइन घुमाए रखने की चाहत में पंजाब ने उहल नदी के पानी पर कब्जा जमा लिया है। पावर प्रोजेक्ट के बरोट स्थित जलाश्य से उहल नदी में नाममात्र का ही पानी छोड़ा जा रहा है। इस कारण यहां पैदा होने वाली ट्राउट मछली के अस्तित्व पर संकट मंडरा गया है। इसका खुलासा पधर एसडीएम द्वारा करवाई गई जांच में हुआ है।
जांच रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि बरोट स्थित जलाशय से वर्तमान में उहल नदी में मात्र आठ फीसदी ही पानी मूल नदी में छोड़ा जा रहा है, जबकि अन्य पानी का उपयोग 110 मेगावाट के हाईड्रो प्रोजेक्ट से बिजली पैदा करने के लिए किया जा रहा है। जांच में यह भी साफ हुआ है कि नदी में 15 प्रतिशत छोड़े जाने के निर्देश सुप्रीमकोर्ट ने दे रखे हैं। बावजूद इसके हाईड्रो प्रोजेक्ट प्रबंधन टरबाइन घुमाने की लालसा में पंजाब सहित केंद्र सरकार को पत्र लिखकर बता रहा है कि यदि 15 प्रतिशत पानी नदी में छोड़ा जाता है तो फिर बिजली उत्पादन कम हो जाएगा। ऐसे में केवल उहल नदी में आठ प्रतिशत ही पानी छोड़ा जा रहा है।
पधर एसडीएम ने यह रिपोर्ट आगामी कार्रवाई के लिए मंडी डीसी ऋग्वेद ठाकुर को भेज दी है। रिपोर्ट में टिक्कन के नायब तहसीलदार की उस रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि 2018 में डैम का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। ऐसे में डैम की मरम्मत के लिए नदी का पानी रोका जाना जरूरी है। दूसरी तरफ डीसी को भेजी गई रिपोर्ट में जिक्र किया गया है जिसमें बरोट हलके के पटवारी के समक्ष हाईड्रो प्रोजेक्ट के अधिशाषी अभियंता द्वारा केवल आठ फीसदी पानी छोड़ जाने की बात को कबूला गया है। हिमाचल प्रदेश में पावर प्रोजेक्ट के संचालन को बनाए गए डैमों से मूल नदी में कम से कम 15 प्रतिशत पानी छोडऩे के निर्देश सुप्र्रीमकोर्ट ने दे रखे हैं।
हिमाचल बचाओ संघर्ष मोर्चा ने की थी शिकायत
उहल नदी पर बने डैम से नदी में कितना पानी छोड़ा जा रहा है, जिसकी जांच प्रशासन ने हिमाचल बचाओ संघर्ष मोर्चा की शिकायत पर करवाई है। मोर्चा के संयोजक ने कुछ दिन पहले उहल नदी का निरीक्षण कर नदी में पानी न छोड़े जाने का आरोप जड़ा था। इसकी शिकायत मंडी डीसी से की थी। हिमाचल बचाओ संघर्ष मोर्चा के संयोजक लक्ष्मेंद्र सिंह ने कहा कि पंजाब हिमाचल में पावर प्रोजेक्टों के संचालन के दौरान सुप्र्रीमकोर्ट के आदेशों को भी नजरअंदाज कर रही है।
40 से 110 पर पहुंच गया बिजली उत्पादन
पंजाब सरकार की ओर से संचालित पावर प्रोजेक्ट ने 1931 में बिजली पैदा करना शुरू किया था। इस पावर प्रोजेक्ट को केवल 40 मेगावाट की बिजली डतपादन के लिए बनाया गया था, लेकिन आज इसकी क्षमता 110 मेगावाट कर दी गई है और उहल नदी के पूरे पानी का उपयोग बिजली बनाने की क्षमता हासिल करने के लिए हो रहा है। ऐसे में डैम से आठ प्रतिशत पानी ही उहल नदी में छोड़ा जा रहा है।
पावर प्रोजेक्ट के डैम से मूल नदी में 15 प्रतिशत पानी छोड़ा जाना अनिवार्य है। उहल नदी पर बरोट में बने जलाशय से नदी में छोड़े जा रहे पानी की पूरी रिपोर्ट मंडी डीसी को भेज दी गई है।
-मोहन सिंह सैणी, एसडीएम पधर