हिमाचल दस्तक : रमेश सिद्धू : संपादकीय : संत कबीर गुरु महिमा का गुणगान करते हुए कहते हैं, ‘गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।’ यानी गुरु की आज्ञा से ही आना-जाना चाहिए। लेकिन ज्ञान का पुंज बनकर रास्ता दिखाने वाला गुरु ही पथ से भटक जाए तो शिष्य किसका अनुसरण करे।
पालमपुर में शराब की बोतल लेकर छात्राओं के साथ डांस करते हुए कॉलेज प्रोफेसर की वायरल वीडियो हो या रोहड़ू में राज्य पुरस्कार अवार्डी शिक्षक द्वारा छात्राओं से छेड़छाड़ का मामला। गली-नुक्कड़ से लेकर वॉट्सएप्प तक पर अभी चर्चाओं का बाजार गर्म था कि शिमला जिले के दूर-दराज क्षेत्र कुपवी में शिक्षकों का 11 बजे तक भी स्कूल में दर्शन न देना एक नई चर्चा को जन्म दे गया। ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे शिक्षण संस्थानों की हालत की जरा सी भी जानकारी रखने वाले जानते हैं कि वहां बहुत से स्कूलों में शिक्षकों की लेटलतीफी कोई नई बात नहीं है। हालत ये कि रिहायश शिमला में और पोस्टिंग 70-80 किमी दूर तक स्थित किसी स्कूल में।
शिमला से स्कूल पहुंचने में तीन-चार घंटे लग जाना मामूली बात है। राम राज्य है, पूछने वाला कोई नहीं। तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी पीठ खुजाऊं की तर्ज पर सब एक-दूसरे को ‘को-ऑपरेट’ कर रहे हैं। बच्चों का भविष्य क्या होगा, उन स्कूलों में कैसी पौध तैयार हो रही है, किसी को मतलब नहीं। अक्षर ज्ञान दे रहे हैं… ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे पढ़ रहे हैं (शिक्षित भले ही न हों)… हिसाब-किताब करना सीख रहे हैं…इससे आगे सोचने की फुर्सत ही किसके पास है। कोई एकाध असाधारण यानी एक्स्ट्राऑर्डिनरी बच्चा अपनी मेहनत से कोई एंट्रेंस निकाल ही देता है और मुफ्त के यश में भागीदारी तो सबकी रहती है। केक कटेगा तो सबमें बंटेगा।
सरकारी नौकरी है, पहली को तनख्वाह तो आ ही जानी है। लेकिन, अध्यापन को मात्र नौकरी समझने वाले इन ‘गुरु जी’ को समझना होगा कि शिक्षक केवल किताबी ज्ञान ही नहीं देता, बल्कि जिंदगी जीने की कला सिखाने का भी काम करता है। उन्हें समाज में आदर्श, राष्ट्र निर्माता, पथ प्रदर्शक माना जाता है। वे समाज की धुरी हैं जिनके मार्गदर्शन में देश का निर्माण करने वाला भविष्य सुशिक्षित व प्रशिक्षित होता है। इसलिए गुरु की गरिमा को कलंकित न कर शिष्यों के सामने आदर्श स्थापित करें। तभी समाज को आकार एवं दिशा देने की अपनी भूमिका से न्याय कर पाएंगे।