जनता के सामने आए सुधीर, ठंडे मन से गरमाया माहौल, दिल की लगी दिल ही जाने
हिमाचल दस्तक : शोले फिल्म में ठाकुर की तरह बादामी रंग की शॉल ओढ़े सुधीर शर्मा शनिवार को जनता के सामने आए। सियासी प्रवचन इस तरह से दिए कि भक्तगण मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे। पंचतंत्र की कहानी सुनाकर जनतंत्र की एहमियत समझाई। कहानी में बताया कि एक महात्मा जी जंगल में कुटिया बना कर रहते थे।
एक चूहा भी महात्मा जी के साथ रहता था। एक दिन चूहा भागता हुआ आया और बोला कि महात्मा जी मुझे बचाइए, एक बिल्ली मुझे खाने के लिए आ रही है। महात्मा जी ने अभयदान देते हुए कहा कि तुम भी बिल्ली बन जाओ। मुकाबला करो। फिर दूसरी दफा बिल्ली बने चूहे के पीछे कुत्ता पड़ गया। महात्मा जी ने चूहे को बिल्ली से कुत्ता बना दिया। अगली बारी शेर कुत्ते के पीछे पड़ गया। अब महात्मा ने अपनी शक्ति से शेर बना दिया ।
चूहा जब शेर बना और उसको शिकार नहीं मिला तो वह महात्मा को खाने को तैयार हो गया। महात्मा ने तुरंत उसको पुन: यह कह कर चूहा बना दिया कि, ‘पुन: मूषक भव: । ‘ यह कहानी बयां करके पंडित जी ने कथा का आगाज़ किया । यह कथा सुधीर ने उन लोगों सुनाई जिन पर यह आरोप लगे हैं कि जिनको खुद सुधीर शर्मा ने बनाया था, मगर अब कभी फेसबुक या सोशल मीडिया के अन्य साधनों से उनके वजन को हल्का करने की सोच पाले हुए हैं।
पंडित जी ने यह भी कहा कि अब दो दिन बचे हुए हैं, ऐसा कामकाज हर बूथ पर कीजिए कि इज्जत बच जाए। आह्वान किया कि आपके काम का मैसेज प्रदेश-देश दोनों में जाए। पर उन्होंने एक मर्तबा भी न तो कांग्रेस प्रत्याशी का नाम लिया और न ही यह खुलासा किया कि बूथ लेवल पर काम क्या करना है ? दिल दर्द भी सांझा किया कि उन्होंने कभी यह कल्पना नहीं की थी, उनको ऐसी बैठक भी करनी पड़ेगी।
सियासी माहिर भी परेशान हैं कि आखिर ऐसी मीटिंग हुई ही क्यों होगी ? वहीं आम लोग भी परेशान हैं कि आखिर दर्दे-दिल की दवा क्या चुनावी नतीजों से बाहर निकलेगी या नहीं ? चूहों के जिक्र से सियासी फिक्र भी कांग्रेस काडर में फैल गया है। कोई टकराने को तैयार है तो कोई स्लिप होने की सोच रहा है। दर्द उठा है तो गुब्बार भी छा गया है।
यह तेरा घर-यह मेरा घर, देखना हो किसी ने गर
सुधीर वर्सेस कांग्रेस का मैच रहा ड्रॉ, माइनस सुधीर एकजुट हुई पूरी कांग्रेस
शनिवार को हिमाचल कांग्रेस माइनस सुधीर शर्मा एकजुट हो गई। सियासत में सुधीर शर्मा के बड़े भाई के नाम से मशहूर जीएस बाली के साथ उनकी बड़ी बहनें विप्लव ठाकुर और चंद्रेश कुमारी, ठाकुर सिंह भरमौरी, सुखविंदर सिंह सुक्खू, राजेश धर्माणी, अजय महाजन, सतपाल रायजादा, कमल किशोर समेत कई अन्य बड़े पदाधिकारी पूर्व एमएलए एकजुट होकर मीडिया के सामने आ गए। कार्यकर्ताओं की भीड़ भी संग आई। रिवायत के मुताबिक इन्होंने जयराम सरकार की भी खूब मज्ज्मत की। पर जब यह सवाल उठा कि एकजुटता के दावे में वो हवा कहां गायब है जो सुधीर शर्मा की यहां भी गैरमौजूदगी सामने आ गई।
जवाब आया कि शर्मा ने अपने घर पर बैठक बुलाई हुई है तो वह नहीं आ सके। बात आगे बढ़ी तो यह सवाल उछला कि क्या शर्मा का यहां आना जरूरी नहीं था क्या ? तपाक से बाली साहब का जवाब आया कि बहुत जरूरी था। पर फिर भी क्यों न आए, इस सवाल का जवाब नहीं आ पाया। दरअसल, माइनस सुधीर कांग्रेस ने अंतिम दाव यह खेल दिया कि संगठन से नेता होते हैं, नेता से संगठन नहीं । चंद्रेश कुमारी का सामने आना, विप्लव ठाकुर के मैदान में लगातार बने रहने और तमाम बकाया कांग्रेसयों के ताकत झोंकने से हाथ वाले खुद को साबित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रहे हैं।
सुधीर के पर्दे के पीछे रहने से स्टेज पर सारे कांग्रेसी अब इज्जत की लड़ाई लडऩे पर उतारू हुए हैं। यह अलग बात है कि गम भी है। सुधीर के आने की खुशी नहीं हुई तो गम भी नहीं मनाया जा रहा। सुधीर ने भी कुछ कांग्रेसी नेताओं को अपने आंगन में पहुंचा कर बकाया कांग्रेसियों के दिल मे कुछ-कुछ तो हो ही गया।