हिमाचल दस्तक। संगड़ाह
सिरमौर जिला की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परम्पराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र के लोग इन दिनों बूढ़ी दिवाली त्यौहार की तैयारियों में जुट गए हैं।
आगामी चार दिसंबर से जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र की अधिकतर पंचायतों में मशाल यात्रा से बूढ़ी दिवाली पर्व शुरू हो जाएगा। कुछ पंचायतों अथवा गांवों में इसे मशराली मे नाम से मनाया जाता है। दीपावली के ठीक एक माह बाद यह त्यौहार मनाया जाता है।
गृहिणियों ने इस पर्व पर परोसे जाने वाले मुख्य व्यंजन मुड़ा व शाकुली बनाने की तैयारी शुरू कर ली है। करीब अढ़ाई लाख की आबादी वाले ग्रेटर सिरमौर अथवा गिरिपार के शिलाई, आंज-भौज, संगड़ाह, कमरउ, रोनहाट व राजगढ़ क्षेत्र के अलावा उतराखंड के जौंसार बाबर तथा शिमला व कुल्लू जाला के कुछ गांवों में भी अलग-अलग नामों से यह मनाया जाता है।
उपमंडल संगड़ाह के भराड़ी, रजाना, चोकर व चाढ़ना में मशराली के नाम से यह त्यौहार मनाया जाता है तथा इस दौरान बुड़ेछू नृत्य व सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन भी होता है। बूढ़ी दीवाली के इस त्यौहार को परंपरागत तरीके से मनाने के लिए क्षेत्र के ग्रामीण कई दिन पहले से ही तैयारी में जुट जाते है।
इन दिनों ग्रामीण अपने घरों लिपाई-पुताई कर रहे है। बूढ़ी दीवाली में परोसे जाने वाले पारम्परिक व्यंजन मुड़ा, तेलवा व शाकुली के लिए महिलाएं गेंहू, चावल, तिल, भांगजीरा, चौलाई व सूखे मेवे आदि को तैयार कर रही है। हुशू, डाव व काठौले आदि कहलाने वाली विशेष मशालें जलाकर यह त्यौहार शुरू होता है। दीपावली की तरह क्षेत्र में यह पर्व भी सप्ताह भर चलता है।