हिमाचल दस्तक। जोगिंद्रनगर
सैर का त्यौहार नई फसल और सर्दियों के मौसम की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। कुल्लू, मंडी और कांगड़ा के लोग इस त्यौहार को अपने घरों में पारिवारिक पर्व के रूप में मनाते हैं, जबकि सोलन और शिमला के इलाकों में इसे सामूहिक त्यौहार की तरह मनाया जाता है।
लोगों का मानना है कि इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं और लोग उनका स्वागत करते हैं। सैर के दौरान लोग अपने से बड़ों को भेंट भी देते हैं, जिसमें दूब (पवित्र घास) और अखरोट जैसे चुनिंदा ड्राई फ्रूट्स होते हैं।
पंरपरागत रूप से इस दिन अखरोट, मक्की, धान, धूड़ा, खीरा जैसी नई फसल की शुरुआत की जाती है। पिछली शाम को ही घर में नई फसल जैसे धान का सिल्ला, अखरोट, खीरा, खट्टा, अमरूद, सेब, गलगल और मक्की जैसी चीजों को जमा कर लिया जाता है।
सैर के दिन तड़के इन सब चीजों को मंदिर की तरह सजा कर फसलों की पूजा की जाती है। इनकी पूजा के बाद घर में जश्न मनाया जाता है। दिन में पूरियां, मिट्ठू, सुहालू और पतरोड़े जैसे पकवान पकाए जाते हैं।
घर और गांव के देवताओं को भोग लगाने के बाद लोग अखरोट के खेल भी खेलते हैं। रक्षा बंधन के दिन बांधी गई राखियां भी सैरी माता को चढ़ाई जाती हैं। सैर मनाने का तरीका हर इलाके का अलग-अलग है।
सैरी माता के पुजारी मदन लाल ने बताया कि सैर त्यौहार पुराने समय से मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि सैर की पिछली रात को काले महीने का अंत हो जाता है। काले महीने को काल का महीना भी कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि जिन-जिन घरों में सैर का दीया जलता है वहां कोई भी बाधा या मुसीबत नहीं आती है। उन्होंने सबसे अनुरोध किया है कि इस प्रथा को बनाए रखें, ताकि हमारे घर-परिवार की रक्षा हो सके।
उन्होंने कहा कि सैर की पिछली रात 12 बजे से वे घर-घर सैर का दीया लेकर जाते हैं, कभी भी उनके साथ कुछ हादसा नहीं हुआ, जहां उन्हें अनुमति नहीं होती, वहां उनके पैर रुक जाते हैं।