हिमाचल दस्तक ब्यूरो। शिमला
2003 से पहले के शिक्षकों को ओल्ड पेंशन स्कीम के लाभ देने के मामले में हाईकोर्ट से पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद अब राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जा रही है। इस बारे में वित्त विभाग ने एक साथ ही रिव्यू पेटीशन और स्पेशल लीव पेटीशन यानी एसएलपी दायर करने को कहा था। चूंकि रिव्यू पेटीशन हाईकोर्ट में खारिज हो गई है, इसलिए अब सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की जा रही है।
कुछ राज पहले प्रदेश हाईकोर्ट ने जेबीटी शिक्षकों के अनुबंध पीरियड को पेंशन और वार्षिक वेतनवृद्धि के लिए गिने जाने संबंधित फैसले पर सरकार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी। यदि इस अवधि को कंसीडर किया जाए तो इन्हें न्यू पेंशन के बजाये ओल्ड पेंशन स्कीम के दायरे में लिया जाना था।
मुख्य न्यायाधीश एल नारायण स्वामी और न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि उनके द्वारा दिए गए फैसले में कोई त्रुटि नहीं है। हाईकोर्ट से ये फैसला आने के बाद अब शिक्षा सचिव ने विभाग को एसएलपी ड्राफ्ट करने को कहा है। इसे सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही दायर किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि जगदीश चंद और अन्य याचिकाकर्ताओं के मामले में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार प्रार्थियों द्वारा अनुबंध आधार पर जेबीटी शिक्षक के तौर पर दी गई सेवाओ को पेंशन के लिए क्वालीफाइंग सर्विस और वार्षिक वेतनवृद्धि के लिए गिने जाने के आदेश दिए थे।
हाईकोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी जिसे खंडपीठ ने खारिज कर दिया। प्रार्थियों के अनुसार जब विद्या उपासकों के कार्यकाल को पेंशन और वार्षिक वेतनवृद्धि के लिए गिना जा सकता है तो उनसे बेहतर स्थिति में होते हुए उनके अनुबंध कार्यकाल को भी इन लाभों के लिए गिना जाना चाहिए।
कोर्ट ने प्रार्थियों की दलीलों से सहमति जताते हुए उनके अनुबंध सेवाकाल को पेंशन व वार्षिक वेतनवृद्धि के लिए गिनने के आदेश दिए थे। इधर राज्य सरकार का तर्क है कि इस आदेश में पेंशन रूल्स को कंसीडर नहीं किया गया है। इसलिए फैसले को फिर से रिव्यू करवाने का अधिकार मौजूद है।