हिमाचल दस्तक : विजय कुमार : संपादकीय : जिस्पा डैम प्रोजेक्ट पर 2 साल से प्रदेश सरकार का चुप्पी साधे रखना ठीक नहीं है। मामला इसलिए ज्यादा गंभीर है, क्योंकि यह प्रोजेक्ट राष्ट्रीय महत्व का है। यह घोषणा केंद्र सरकार ने कर रखी है। यह प्रोजेक्ट चिनाब बेसिन पर बन रहा है। इसके लिए फंडिंग की भी ज्यादा दिक्कत नहीं है।
केंद्र सरकार इसके लिए 3000 करोड़ रुपये देने को तैयार है। मगर राज्य सरकार की सुस्ती का यह आलम है कि वह विस्थापित होने वाले लोगों को ही नहीं मना पा रही है। इस प्रोजेक्ट में लाहौल के लेह के साथ लगते सीमावर्ती क्षेत्र में करीब 200 मीटर ऊंचा बांध बनना है। यह प्रोजेक्ट इसलिए पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है, क्योंकि वह पाकिस्तान को जाने वाला फालतू पानी रोकना चाहते हैं। उनकी यह सोच सही भी है। पानी के भारतीय क्षेत्र में रुकने के अलावा इस डैम से करीब 300 मेगावाट बिजली भी बनाई जा सकती है। प्र
देश सरकार का रवैया अन्य प्रोजेक्टों के लिए भी इस तरह का ही है, ऐसा कतई नहीं है। सरकार चिनाब बेसिन के अन्य बिजली प्रोजेक्टों के लिए पब्लिक सेक्टर कंपनियों जैसे एसजेवीएनएल, एनएचपीसी या एनटीपीसी को दिल खोलकर रियायतें दे रही है। इसके अलावा प्रदेश में निवेश को आकर्षित करने के लिए भी भरसक प्रयास कर रही है।
देश के साथ-साथ विदेशों में भी इन्वेस्टर मीट का आयोजन किया जा रहा है। वहीं राष्ट्रीय महत्व के प्रोजेक्ट के लिए इस तरह की सुस्ती समझ से परे है। इस प्रोजेक्ट के फायदे अन्य प्रोजेक्टों से ज्यादा ही होंगे। साथ ही प्रदेश में खर्च होने वाली धनराशि और लाभ की गारंटी भी ज्यादा ही होगी।
हालांकि पूर्व सरकार के समय लोगों को मनाने के लिए ऊर्जा निगम की एक टीम केंद्र सरकार के दल के साथ गई थी। लोगों से यह वादा किया गया था कि एन्वायरनमेंट इंपैक्ट असेसमेंट रिपोर्ट आने तक प्रोजेक्ट का काम शुरू नहीं होगा, इसलिए वे प्रारंभिक रिपोर्ट और सर्वे का काम करने दें। लेकिन लोग राजी नहीं हुए।
राज्य में सरकार बदलने के बाद भी स्थिति नहीं बदली। लोगों का रवैया नरम पडऩे के बजाय और कड़ा हो गया। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद मनाली से गई टीम को वहां से लोगों ने भगा दिया। देरी राज्य सरकार की तरफ से ही की जा रही है। केंद्र सरकार ने तो 2008 में ही इसे क्लीयरेंस दे दी है। जो पहले हुआ सो हुआ, अब राज्य सरकार को इस प्रोजेक्ट को लेकर और देरी नहीं करनी चाहिए।