हिमाचल दस्तक। रमेश सिद्धू
अमन काचरु… इस नाम को भूले तो नहीं होंगे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं हास्पिटल के फस्र्ट ईयर के इस छात्र की 8 मार्च, 2009 को रैगिंग के कारण हुई मौत अभी भी प्रदेश के माथे का कलंक बनी हुई है। घटना को लेकर पूरे देश में उठी रोष की लहर के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी शिक्षण संस्थानों में रैगिंग विरोधी कानून का सख्ती से पालन करने के निर्देश जारी किए थे। लगा था कानून का डंडा शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के नाम पर छात्रों के उत्पीडऩ रुपी नाग का फन कुचलने में कामयाब हो गया है। लेकिन बुधवार को कांगड़ा के बहुतकनीकी संस्थान के छात्रावास में कंप्यूटर ट्रेड के छात्र के साथ अंजाम दी गई रैगिंग की घटना ने बता दिया कि युवाओं में इस कानून का कोई खौफ नहीं है।
इससे पहले भी कांगड़ा जिले में ही रैगिंग के दो मामले सामने आ चुके हैं जबकि कई मामले तो डर या इग्नोर करने की हमारी आदत के चलते सामने ही नहीं आ पाते। हालांकि बहुतकनीकी संस्थान में हुई इस घटना में संस्थान प्रबंधन ने आरोपी प्रशिक्षुओं को निलंबित कर उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दे दी है। लेकिन रैगिंग के नाम पर जूनियर्स का मानसिक व शारीरिक उत्पीडऩ या अमानवीय व्यवहार शिक्षण संस्थानों में व्यवस्थाओं और युवाओं की हिंसक होती मानसिकता को लेकर आंखें खोलने वाला है। हंसी-मजाक के लिए शुरू हुई रैगिंग की प्रक्रिया सीनियर विद्यार्थियों की ओर से कॉलेज में आए नए विद्यार्थी से परिचय हासिल करने की प्रक्रिया थी। लेकिन आधुनिकता के साथ कब रैगिंग के तरीके बदलते गए और कब इसने क्रूरता भरा अमानवीय चेहरा इख्तियार कर लिया, पता ही नहीं चला।
रैगिंग के तौर-तरीकों ने इस कदर हिंसक रुप धारण किया कि कितने ही विद्यार्थी अपनी जान गंवा चुके हैं। गलत व्यवहार, अपमानजनक छेड़छाड़, मारपीट या अन्य शारीरिक यात्नाएं रैगिंग के ऐसे-ऐसे वीभत्स रुप सामने आने लगे हैं कि माता-पिता अपने बच्चों को किसी भी नए संस्थान में भेजते हुए डरने लगे हैं। समय आ गया है कि रैगिंग को गंभीर अपराध घोषित कर और कड़ी सजा का प्रावधान किया जाए, क्योंकि तीन साल तक की सजा इस आतंक को खत्म करने के लिए शायद काफी नहीं है। सीनियर छात्रों के लिए रैगिंग बेशक मौज-मस्ती हो सकती है, लेकिन रैगिंग से गुजरे छात्र के जेहन से इसकी भयावहता मिटती नहीं है। कोशिश करने के बाद भी ताउम्र उसका पीछा करती रहती है।