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सोने के हिरण कर पीछे भागे श्री राम, लक्ष्मण रेखा ने रावण डराया
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हनुमान ने उजाड़ी अशोक वाटिका,खाए फल
हिमाचल दस्तक,राजीव भनोट। ऊना : श्री रामलीला कमेटी द्वारा रामलीला मैदान में श्री रामायण के आधार पर किए जा रहे रामलीला मंचन के आठवें दिन ऊना सदर के विधायक सतपाल रायजादा ,डेरा दुखभंजन के संस्थापक बाबा चरनजीत चन्नी जी,पीसीयू के महासचिव जतिंदर कँवर,मुनींद्र अरोड़ा राजू ,ऊना जनहित मोर्चा के सलाहकार मास्टर चमन लाल चौधरी,इकबाल सिंह,गुबक्श मक्कड़,किशन कपिला ने दीप प्रज्वल्लन किया।
जबकि रेल बोर्ड की पीएससी कमेटी के सदस्य हरि ओम भनोट व साहित्यकार प्रोफेसर कृष्ण मोहन पांडे विशेष रुप से मौजूद रहे। इस अवसर पर श्री रामलीला कमेटी ऊना के चेयरमैन सोमनाथ, स्वर्णकार अध्यक्ष अविनाश कपिला, महासचिव डॉ सुभाष शर्मा ने अतिथियों को सिरोपा देकर सम्मानित भी किया।
वृंदावन के आये श्री राधाकृष्ण मण्डल के ताराचंद एंड पार्टी व व्यास भगवत किशोर ने संगीतमयी दृश्यों को आगे बढ़ाते हुये भगवान श्री राम के पंचवटी आश्रम का दृश्य दिखाया। जिसमें दिखाया गया कि सरूपनखा सुंदर रूप बना श्री राम के पास पंचवटी आश्रम पहुंची। भगवान राम व लक्ष्मण को तंग करने पर लक्ष्मण उसकी नाक काट देते हैं। बहन की नाक कटने की खबर सुनकर रावण क्रोधित हुए और अपमान का बदला लेने के लिए माता सीता का हरण करने की योजना बनाई और मायावी मारीच से मदद ली। मारीच ने सोने के मृग का रूप धारण करके पंचवटी पर विचरने लगा।
माता सीता के मन में मृग पाने की लालसा जगी और स्त्री हठ के चलते पहले प्रभु राम मृग के पीछे गए और फिर मारीच की मायावी आवाज के बशीभूत होकर माता सीता ने लक्ष्मण को भी कुटिया से दूर जाने पर विवश कर दिया। लक्ष्मण के जाते ही रावण सीता का हरण करने पहुंचा। लेकिन कुटिया के चहुंओर लक्ष्मण रेखा लांघने की हिम्मत नहीं कर पाया। इस पर साधु वेश धारण करके भिक्षा मांगने के बहाने से माता सीता को लक्ष्मण रेखा से बाहर बुलाया और सीता माता के लक्ष्मण रेखा लांघते ही रावण ने सीता माता का हरण कर लिया।
रोती-बिलखती सीता को लंका ले जा रहे रावण को जटायू ने रोकना चाहाए तो रावण ने उसे भी मार डाला। दूसरी तरफ श्री राम व लक्ष्मण सीता को कुटिया में न पाकर ढूंढने के लिए निकल पड़े। मार्ग में उन्हें पर्वताकार गृधराज जटायु दिखाई दिए। जटायु ने उन्हें बताया कि माता सीता को बचाते हुए रावण ने उन्हें घायल कर दिया।
इसके बाद जटायु ने प्राण त्याग दिए और श्री राम ने विधिपूर्वक उनका अंतिम संस्कार किया। भीलनी के आश्रम में प्रभु श्री राम लक्ष्मण सिंह और भूख लगने पर भीलनी ने श्रीराम को जूठे बेर खिलाए , जबकि लक्ष्मण ने इन वेरों को ग्रहण नहीं किया , इसके बाद जंगल में श्री राम के साथ हनुमान जी मिले और हनुमान जी ने सुग्रीव के साथ श्री राम की मित्रता करवाई ,बाली -सुग्रीव में युद्ध हुआ और श्रीराम के तीर से बाली वध हुआ. हनुमान जी को समुंदर पार कर लंका भेजा गया ,जहां विभीषण से उनकी मुलाकात हुई और अशोक वाटिका में माता सीता के साथ हनुमान जी ने भेंट की और भूख लगने पर अशोक वाटिका के फलदार वृक्षों को फल खाते हुए तोड़ दिया ।
इस दौरान श्रद्धालुओं में प्रसाद भी वितरित किया गया। इस अवसर पर प्रिंस राजपूत,प्रिंस मक्कड़, पितांम्बर जसवाल,प्रदीप चड्ढा, रामपाल बेदी, गणेश सांभर, बलविंद्र कुमार गोल्डी, राजकुमार पठानिया, मुनीश सांभर, डॉ अनुराग शर्मा, राजीव भनोट, राजीव शर्मा, शिवकुमार सांभर, ललित सांभर, गोपाल कृष्ण पालु, आचार्य अश्विनी, विजय पुरी, राजन पुरी व ईश ग्रोवर सहित अन्य उपस्थित रहे।