क्या जंग में उतरे उम्मीदवारों के होंगे वारे-न्यारे, उठे सवाल-बवाल
उदयबीर पठानिया: धर्मशाला उपचुनाव में भाजपा-कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत-हार की चर्चाएं नहीं हैं जितनी चर्चाएं इनकी बेचारगी की हैं। सियासत में उतरी भाजपा-कांग्रेस के खाते से उतरी नन्ही जानों यानी विशाल नैहरिया और विजय इंद्र कर्ण ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें इतनी आफतों से जूझना पड़ेगा। आम आदमी भी यह निचोड़ निकाल कर निढाल बैठ गया है कि अगर मुकाबला इन्हीं 2नवजात सियासी शिशुओं में रहा तो वही जीतेगा, जिस पर पुराने नेताओं को सयानापन कम असर करेगा। दरअसल, इसकी अनेक वजहें हैं।
पहली मूल जड़ यह है कि क्या पुराने नेता आसानी से इनका बतौर एमएलए नामकरण होने देंगे? या फिर आजाद राकेश चौधरी को कोई ऐसा बल मिल जाएगा, जिससे वह विधानसभा का दरवाजा खोल लेंगे? भाजपा-कांग्रेस इन खबरों से परेशान हैं कि कहीं चौधरी भाई की सियासी चौधराहट से उनको नुकसान न हो जाए? कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी सुधीर शर्मा तो मैदान से ही गायब हो गए हैं। कांग्रेस की हालत यह है कि न तो इनको आज तक पार्टी-संगठन का कंप्यूरराइज्ड रिकॉर्ड शर्मा ने थमाया है और न ही अपना हाथ। कांग्रेसी जमात के बड़े-बड़े नेता मैदान में उतर तो आए हैं, मगर उतरे हुए चेहरों के साथ।
किसी में इतना दम नहीं है कि वह सुधीर शर्मा से बात करके उनका सहयोग तो दूर की बात, डाटा भी मांग सके। लिहाजा, सुधीर की लिहाज की आस में बैठे कांग्रेसियों को कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही। हैरानी की बात यह है कि कुछ रोज धर्मशाला में बैठकर सुधीर के परम मित्र रहे नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री वापस लौट गए हैं। इनके साथ भी कोई सियासी मित्रता शर्मा ने नहीं निभाई। अब उनकी जगह प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने ले ली है।
अब तो यह चांस भी खत्म हो गए हैं कि सुधीर उनकी कोई मदद करेंगे। वजह यह है कि चुनाव से पहले सुधीर के पॉलिटिकल गन प्वाइंट पर राठौर ही आए थे। सियासी माहिर भी यह मान रहे हैं कि जिस तरह से माहौल बन रहा है और बना हुआ है, उससे कांग्रेस का आराम से कुछ भी बनता नजर नहीं आ रहा। जो पॉलिटिकल मैन-पॉवर, हेल्प का फ्यूल कांग्रेस को चाहिए, उस पेट्रोल पंप की चाबियां सुधीर के पास हैं। ऐसे में कांग्रेसी चुनावी रथ के चक्के जाम हुए पड़े हैं।
हल्का सा धक्का अगर लग भी रहा है तो भी पहिया अलगाव और सियासी चाहतों के गड्ढे से बाहर नहीं निकल पा रहा है।कमोबेश यही हालत भाजपा की भी है। हार्ड कोर जमीनी वोट बैंक किशन कपूर के दीदार के बिना अपने वोट का कोई जिक्र न करके सबको फिक्र में डाले हुए हैं। पीएम नरेंद्र मोदी के हुक्म के मुताबिक गांधी यात्रा पर निकलने जा रहे कपूर ने भाजपा को और मजबूर कर दिया है। संगठन की चाहत है कि कपूर साहब धर्मशाला के चप्पे-चप्पे में वोट यात्रा करें और दिल को दरिया बना कर वोटों के समंदर को पार्टी की तरफ लाएं। पर मोदी के गांधी यात्रा के रूट चार्ट ने कपूर को भी कंस्टीच्युअंसी से बाहर का रास्ता बना कर दे दिया है।
कोई रोके-टोके भी तो कैसे? रोकते हैं तो यह मोदी हुक्म से बेअदबी होगी। रोक भी लें तो यह डर सता रहा है कि बतौर संगठन उनकी पॉलिटिकल वैल्यू कम होने का मैसेज जाएगा। यही संदेश जाएगा कि क्या कपूर ही सर्वोपरि, सर्व शक्तिमान हैं, जिनके बिना यह सीट निकालने में सब हेल्पलेस हैं? सत्तारूढ़ भाजपा के लिए धर्मशाला के पहाड़ों में एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई नजर आ रही है। हाय-तौबा का माहौल बन गया है। किसी भी मुख से आह तक नहीं निकल रही।
बस, दर्द दबाकर रखने में ही भलाई समझी जा रही है। भाजपा-कांग्रेस की अपने स्यानों से दूरियों के बीच में भाजपा के खाते से आजाद उम्मीदवार राकेश चौधरी के चर्चे बिना किसी खर्चे के हो रहे हैं। भाजपा सरकार के मंत्री भी अभियान को मजबूती से आगे नहीं सरका पा रहे। सरक-सरक कर सब हिल तो रहे हैं, पर आगे नहीं बढ़ रहे।
दो पूर्व सीएम गायब मौजूदा से आस
सत्ता की ठसक से लबरेज भाजपा में कसक भी कम नहीं है। अभी तक न कांगड़ा के पालमपुर से पंडित शांता कुमार ने धर्मशाला पहुंच कर कोई गुर मंत्र दिया है और न ही समीरपुर से प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने धर्मशाला में कोई लेक्चर दिया है। बस उम्मीदें मौजूदा सीएम जयराम ठाकुर पर टिकी हुई हैं। क्या पता जय-जयकार हो जाए।
कांग्रेस भाजपा का साझा डर शाहपुर को
मजे की बात यह है कि सियासत के मंझे हुए खिलाडिय़ों की हर चाल को आम आदमी भी चटखारे लेकर सुना रहा है। शोर यह मचा हुआ कि धर्मशाला के भाजपा-कांग्रेस के दोनों उम्मीदवारों की मूल जड़ें शाहपुर में हैं। शाहपुर के नेताओं को यह डर है कि कल को कहीं ये शाहपुर का रुख न कर लें। ऐसे में कोशिशें यही हैं कि यह अगर धर्मशाला में ही निपट जाएं, तो बेहतर होगा।
जंग 2022 की है
हैरानी की बात यह है कि सियायतदानों की कथित चालों का जनता ही बखान कर रही है। लोगों का कहना है कि युवा उम्मीदवारों को पटकनी देने की चाहतें इसी वजह से हैं कि यह 2019 में तबाह हों तो 2022 में इनको पुन: आबाद होने का मौका मिलेगा।