अनूप शर्मा । बिलासपुर
कोविडकाल में एक ओर जहां तमाम सामाजिक एवं राजनीतिक संगठनों से जुडे लोग कोरोना की मार झेल रहे गरीब व असहाय वर्ग की सेवा कर समाज को सेवा भाव का संदेश दे रहे हैं, वहीं बिलासपुर शहर से संबंध रखने वाली शिक्षिका अच्छर लता (Teacher Achhar Lata) कोविडकाल में झोपड़ियों में रहने वाले प्रवासी बच्चों के बीच शिक्षा का लौ जगाने का प्रयास कर रही हैं।
वह पिछले काफी समय से सेवा के मायनों को सार्थक कर रही हैं। राजकीय केंद्र पाठशाला कोटला में शिक्षिका के पद पर तैनात अच्छर लता (Achhar Lata) लंबे समय से अपने सेवार्थ कार्यों के लिए जानी जाती हैं।
कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन और कर्फ्यू में उन्होंने समाज के उस वर्ग को शिक्षा देने की सोची जो शिक्षा ही नहीं बल्कि अन्य मूलभूत सुविधाओं से भी दूर हैं। बिलासपुर नगर के लुहणू मेला ग्राउंड और कन्या स्कूल के साथ लंबे समय से रहे प्रवासी परिवारों के बच्चों को शिक्षा देने का इन्होंने बीड़ा उठाया है।
शिक्षिका अच्छर लता (Achhar Lata) का मानना है कि शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण विषय है तथा इससे कोई भी अछूता नहीं रहना चाहिए। अच्छर लता ने सबसे पहले इन बच्चों और उनके अभिभावकों से मित्रता बढ़ाई तथा धीरे-धीरे उनकी काउंसलिंग कर शिक्षा की ओर जोड़ना शुरू किया। काम जटिल था लेकिन प्रवासी परिवारों ने उनकी बात को दूर तक सोचा तथा बच्चों को पढ़ाने की बात पर सहमति जताई।
अब बच्चों के लिए किताबें, स्टेशनरी, बोर्ड और टाट-पट्टी आदि मूलभूत सुविधाओं का उन्होंने स्वयं ही अपने खर्चे पर प्रबंध किया तथा बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।
शिक्षिका अच्छर लता (Achhar Lata) ने बताया कि प्रवासी बच्चोें में सीखने की क्षमता बहुत ज्यादा है तथा कुल 15 बच्चों में काफी बच्चे ऐसे हैं जो दिमागी तौर पर तेज हैं और पढ़ाई गई बातों का तुरंत अनुसरण करते हैं। शाम के समय लुहणू घाट पर अच्छर लता की कक्षा खुले आसमान के तले देखी जा सकती है।
शिक्षिका अच्छर लता ने बताया कि भविष्य को संवारने के लिए शिक्षा सबसे बड़ी रोशनी का काम करती है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पर बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा के लिए मोबाइल फोन की जरूरत होती है तो उन्होंने बच्चों को एंड्रायड फोन भी उपलब्ध करवाए हैं जबकि कइयों का मोबाइल रिचार्ज करवाने की जिम्मेदारी भी उन्होंने संभाली है।
सामाजिक कार्यों में सदैव अग्रणी रहने वाली शिक्षिका अच्छर लता दयोली स्थित वृद्धाश्रम में भी बुजुर्गों को कभी अपनों की कमी महसूस नहीं होने देती तथा समय-समय पर जाकर उनकी यथासंभव मदद करती हैं।