हिमाचल दस्तक : विजय कुमार : संपादकीय: हिमाचल प्रदेश अपनी आबोहवा के चलते एजुकेशन हब हो सकता था। लेकिन एक तो उस दिशा में गंभीर प्रयास नहीं हुए, तिस पर स्कॉलरशिप जैसी बातें रही-सही कसर पूरी कर देती हैं। अब छात्रवृत्ति हड़पने वालों का एक और कारनामा सामने आया है।
उन्होंने डे-स्कॉलर्स को हॉस्टलियर दर्शाया है। प्रदेश में संचालित निजी विश्वविद्यालय और कुछ प्रोफेशनल संस्थानों ने इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया है। इसी के साथ कुछ निजी संस्थानों ने संस्थान छोड़ चुके छात्रों को फर्जी तरीके से छात्र दिखाया। यही नहीं विषय बदल कर छात्रवृत्तियां भी हड़पी जाती रही हैं। इस काम के लिए छात्रों के फर्जी दस्तावेज बनाकर छात्रवृत्ति की रकम डकारी गई है। यहां हैरान करने वाली बात यह है कि स्कॉलरशिप घोटाले के इस खेल के लिए हिमाचल के बाहर बैंकों में छात्रों के खाते खोले गए हैं।
सैकड़ों छात्रों के बैंक खाते चार अलग-अलग बैंकों में खोले गए। बीते चार साल में 2.38 लाख विद्यार्थियों में से 19 हजार 915 को मोबाइल फोन नंबर से जुड़े बैंक खातों में छात्रवृत्ति की राशि जारी कर दी गई। वहीं 360 विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति चार ही बैंक खातों में ट्रांसफर की गई। 5729 विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने में तो आधार नंबर का प्रयोग ही नहीं किया गया। यही नहीं, 80 फीसदी छात्रवृत्ति का बजट सिर्फ निजी संस्थानों में बांटा गया, जबकि सरकारी संस्थानों को छात्रवृत्ति के बजट का मात्र 20 फीसदी हिस्सा मिला।
फर्जी बैंक खातों और फर्जी प्रवेश के माध्यम से पैसे हड़पने के मामले में कई निजी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधकों पर गाज गिरना तय है। मगर उच्च शिक्षा विभाग के पूर्व अधिकारियों सहित स्कॉलरशिप ब्रांच में सेवाएं दे रहे कर्मचारी भी लपेटे में आ सकते हैं। इस फर्जीवाड़े में विभाग की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है।
अकेले निजी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधक इतनी बड़ी चपत सरकार को नहीं लगा सकते हैं। शिक्षा विभाग में छात्रों के लिए तैयार किए गए ई-पास पोर्टल से भी छेडख़ानी की गई है। ऐसे में सीबीआई उच्च शिक्षा विभाग के ऐसे अधिकारी और कर्मचारी, जिन्होंने पोर्टल के
साथ छेडख़ानी की है, उनसे पूछताछ करेगी। इस फर्जीवाड़े के दोषियों की पहचान कर उन्हें कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
आर्थिक मोर्चे पर भी ध्यान दे केंद्र सरकार
इसमें कोई दोराय नहीं कि केंद्र सरकार घरेलु और विदेश नीति के मसलों पर बेहतर काम कर रही है, मगर आर्थिक मोर्चे पर नाकामी से इंकार नहीं किया जा सकता है। देश की जीडीपी दर लगातार घट रही है। इसी के आधार पर देश के आर्थिक विकास की गति का आकलन किया जाता है। जीडीपी दर घटने का अर्थ यह है कि आर्थिक विकास की गति धीरे-धीरे मंद पड़ रही है। ऐसा करीब छह सालों से हो रहा है। भारत कृषि प्रधान देश है।
अर्थव्यवस्था में उछाल या गिरावट कृषि पर ज्यादा निर्भर करती है। हमारी कृषि का ज्यादा दारोमदार मानसून पर रहता है। यानी मानसून की चाल भी हमारी अर्थव्यवस्था की गति का बड़ा निर्धारक है। इस प्राकृतिक कारक के अलावा आपदाओं का नंबर आता है। मगर जीडीपी की इस गिरावट के लिए कोई बड़ा प्राकृतिक कारक जिम्मेदार नहीं है। न तो मानसून ने बड़ा झटका इस अवधि में दिया है, न ही कोई प्राकृतिक आपदा इस दौरान आई है।
सब कुछ अनुकूल ही रहा है। इसके बाद बात देश में अस्थिरता की आती है। यह भी अर्थव्यवस्था की गति का निर्धारक बनती है। मगर इस अवधि में स्थिर ही नहीं, बल्कि मजबूत सरकार देश को मिली है। अर्थिक मोर्चे पर लिए गए कुछ फैसले जरूर भारी पड़े हैं। सरकार इस बात को चाहे न माने, मगर नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है।
नोटबंदी के इस झटके से देश उबर नहीं पाया था कि जीएसटी का झटका दे दिया गया। जीएसटी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बुरा फैसला नहीं है, लेकिन इसको लागू करने में कुछ गलतियां हुई हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रही हैं। देर से ही सही सरकार आर्थिक मोर्चे पर अपनी कमिया मानने लगी है। इसलिए आर्थिक रियायतें घोषित की गई हैं। मगर ये नाकाफी लग रही हैं। अर्थव्यवस्था में नई जान डालने के लिए बड़े फैसले लेने पड़ेंगे।