हरीश चौहान गोहर।
अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस के अवसर पर रविवार को उप मंडल की तुन्ना पंचायत में एक जागरुकता शिविर आयोजित किया गया। शिविर में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव सूर्य प्रकाश ने कहा है कि बाल श्रम को समाप्त करने के लिए सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने बाल श्रम खत्म करने के लिए आवश्यक कार्रवाई लिए 2002 में विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का शुभारंभ किया था। हर साल दुनियाभर में 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस दिन को मनाए जाने का उद्देश्य 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम ना कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने और आगे बढ़ने के लिए जागरूक करना है, ताकि बच्चे अपने सपनों और बचपन को ना खोएं।
उन्होंने बताया कि इस दिन दुनियाभर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य बाल श्रम पर रोक लगाना भी है। हर साल यह कोशिश रहती है कि 12 जून को विश्व दिवस बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर किया जाए। सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों, नागरिक समाज के साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोगों को जागरूक किया जाता है और उनकी मदद के लिए कई कैंपेन भी चलाए जाते हैं। कई बच्चे ऐसे है जो बहुत छोटी उम्र में अपना बचपन खो देते हैं। 5 से 17 साल के बच्चे ऐसे काम में लगे हुए हैं जो उन्हें सामान्य बचपन से वंचित करते हैं और शिक्षा और स्वास्थ्य से दूर हैं।
अधिवक्ता हेमसिंह ठाकुर ने बताया कि हर किसी के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि बच्चों से उनके सपने ना छीने। उनके हाथों में छाले नहीं, कलम और किताब होनी चाहिए। यह हमारे देश का भविष्य हैं और इन्हें बाल श्रम करने से रोकना हम सबका फ़र्ज़ है
बाल श्रम में बच्चों का प्रतिशत कम आय वाले देशों में सबसे अधिक है, उनकी संख्या वास्तव में मध्यम आय वाले देशों में अधिक है। उन्होंने बताया कि निम्न-मध्यम आय वाले देशों में 9% सभी बच्चे, और उच्च-मध्यम-आय वाले देशों में सभी बच्चों में से 7% बाल श्रम में हैं।
प्रत्येक राष्ट्रीय आय समूह में बाल श्रम में बच्चों की पूर्ण संख्या पर आंकड़े बताते हैं कि बाल श्रम में 84 लाख बच्चे, बाल श्रम में 56% बच्चे, वास्तव में मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं जबकि विकसित देशों में 2 मिलियन साल श्रमिक हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों से मजदूरी करवाना गंभीर अपराध है। बाल श्रम को रोकने और बच्चों को शिक्षित करने के लिए सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून 2009 बनाया है जिसके मुताबिक 14 साल तक की आयु के सभी बच्चों को शिक्षा दिया जाना अनिवार्य किया गया है।
अधिवक्ता नारायण सिंह ने शिविर में आए लोगों को मनरेगा, मोटर व्हीकल एक्ट और घरेलू हिंसा अधिनियम के बारे में जागरूक किया। निशुल्क कानूनी सहायता के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि तीन लाख रुपए की सालाना आय, महिला, आपदा से प्रभावित और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग इसके पात्र हैं। इस अवसर पर अधिवक्ता कृष्ण शर्मा, अतुल कुमार, पैरा लीगल वॉलंटियर काहन सिंह और स्थानीय प्रधान अंजना सहित दर्जनों लोग उपस्थित रहे।