शिमला:
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने प्रदेश में चल रहे शिक्षा, नौकरी व तबादलों के फर्जीवाड़ों पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंंने कहा है कि ऐसे मामले सामने आने से प्रदेश की स्वच्छ छवि को दाग लग रहा है। उन्होंने कहा है कि सरकार को इस दिशा में तुरंत सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
उन्होंने फर्जी डिग्रियां बेचने वाले विश्वविद्यालयों की मान्यता तुरंत रद करने की मांग की है। राठौर ने जारी बयान में प्रदेश में चल रहे निजी शिक्षण संस्थानों के कामकाज पर पूरी निगरानी रखने की मांग करते हुए कहा है कि आज यह संस्थान पैसा कमाने का एक बड़ा गोरखधंधा कर रहे हैं। उन्होंने कहा है ऐसा लगता है कि सरकार ने इन संस्थानों को मनमर्जी की फीस वसूलने और नियमों को ताक पर रखने की खुली छूट दे रखी है। राठौर ने कहा कि निजी विश्वविद्यालयों की फर्जी डिग्रियां सामने आने के बाद तो यह साफ है इस गोरखधंधे में प्रभावशाली लोग भी शामिल हो सकते हैं और सरकार को तुरंत इन डिग्रियों व विश्वविद्यालयों की जांच करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि दोषी विश्वविद्यालयों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करते हुए सरकार को इनकी मान्यता रद कर देनी चाहिए। उन्होंने कहा है प्रदेश में घटिया दवाईयां बन रही हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं में भी फर्जीवाड़ा, पटवारी, पुलिस भर्ती में भी घोटाला तो आखिर इस प्रदेश में यह चल क्या रहा है। उन्होंने कहा है कि उन्हें लगता है कि प्रदेश में फर्जीवाड़े के गिरोह ही सक्रिय हैं क्योंकि आए दिन प्रदेश से यह सूचनाएं लगातार मिल रही हैं कि कभी नौकरी के नाम पर तो कभी तबादलों के नाम पर प्रदेश के भोले-भाले लोगों को लूटा जा रहा है।
फर्जी डिग्रियों के मामले में कटघरे में सरकार
शिमला। यूजीसी द्वारा दो निजी विश्वविद्यालयों द्वारा किए जा रहे फर्जी डिग्री के रहस्योद्घाटन के बाद भी उनके खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई न करने पर सरकार की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में आ गई है। कांग्रेस ने आरोपियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने और उनकी संपत्ति जब्त करने की मांग की है।
विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने जारी बयान में कहा कि कांग्रेस ने निजी विश्वविद्यालयों को अंधाधुंध खोलने का विरोध किया था। इसके बावजूद सरकार ने प्रदेश के कुल 18 विश्वविद्यालयों में से नौ विश्वविद्यालय केवल सोलन जिला में ही खोल दिए और सरकार इन विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली पर नजर रखने में पूरी तरह से विफल रही है।
निजी विश्वविद्यालयों को विनियमित करने के लिए एक प्रभावी तंत्र विकसित करने में सरकार की विफलता और डिग्रियां बेचने के प्रति उदासीन रवैया था। ऐसे में प्राइवेट एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन रेगुलेटरी कमीशन भी दोषपूर्ण साबित हो गया है। उन्होंने कहा कि इतना गंभीर मामला सामने आने के बाद निजी विश्वविद्यालयों की डिग्रियों और छात्रों के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।