हिमाचल दस्तक : रमेश सिद्धू : संपादकीय : बीते जून में कांगड़ा जिले के देहरा की ग्राम पंचायत हार की 28 वर्षीय योगिता को सिर्फ इसलिए जान गंवानी पड़ी, क्योंकि उसके माता-पिता उसके पति को दुबई जाने के लिए 6 लाख रुपये नहीं दे पाए। पिछले करीब एक दशक में क्राइम फ्री स्टेट कहलाए जाने वाले हिमाचल में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है और योगिता का दहेज की बलि चढऩा उसकी एक बानगी भर है।
तपोवन में चल रहे शीतकालीन सत्र के दौरान नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री की ओर से पूछे गए प्रश्न के लिखित जवाब में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जो आंकड़े पेश किए, वो आंखें खोलने वाले हैं। वर्ष 2018 के दौरान प्रदेश में 345 मामले दुष्कर्म के जबकि 700 मामले महिला उत्पीडऩ के पंजीकृत हुए। ध्यान दीजिए, ये संख्या सिर्फ उन मामलों की है, जिन्हें बाकायदा रजिस्टर्ड करवाया गया। इसके अलावा कितने मामले ऐसे होंगे, जो दबा दिए जाते हैं या जिनमें पीडि़ता शर्म या किसी अन्य दबाव के चलते खुद ही मुंह नहीं खोलती। जाहिर है इससे हिमाचल जैसे शांत माने जाने वाले राज्य की छवि खराब हो रही है।
हालांकि महिलाओं के प्रति अपराधों पर लगाम लगाने के लिए सरकारी प्रयास यहां भी जारी हैं। महिलाओं की सुरक्षा एवं संकट में उन्हें तुरंत सहायता प्रदान करने के लिए गुडिय़ा हेल्पलाइन है। आपातकालीन प्रतिक्रिया समर्थन प्रणाली 112 है तो शक्ति बटन एप्प भी लांच किया गया है। लेकिन, सरकाघाट में 81 वर्षीय वृद्धा के साथ क्रूरता होती है तो सभी तकनीकें धरी रह जाती हैं। बेटियों को अनमोल मानने के दावे चाहे कितने ही किए जाएं, लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसी घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं। बेटी है अनमोल, मेरी लाडली व बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों की सार्थकता तभी है, जब लोगों की सोच बदले। वरना बिना मर्म समझे और उसको अमल में लाए, ये सभी अभियान बेमानी ही साबित होते रहेंगे।